वन्दे मातरम
Shrimanta Shankardev-पूर्वोत्तर राज्य की महान विभूति
इनके पूर्वज राजा दुर्लभनारायण के समय से बड़ भूइयां (सरदार अथवा जमींदार) थे। बड़ भूइयां पद वंशानुक्रम से चलता है। शंकरदेव (Shrimanta Shankardev) के पिता कुसुमवर भूइयां शिरोमणि अपने पिता की मृत्यु के उपरांत शिरोमणि भूइयां के पद पर आसीन हुए।
पिता कुसुमवार कुशल संगीतज्ञ थे। उन्हें गंधर्व का अवतार कहा जाता था। वे पक्के शाक्त थे और अपने घर में ही उन्होंने उपासना के लिए शक्ति की प्रतिमा स्थापित कर रखी थी। शंकर के बाल्यकाल में ही माता सत्यसंधा तथा पिता कुसुमवार का देहांत हो गया।
उनकी दादी खेरसुती ने तथा चाचा जयंतदलइ व माधव दलइ की देखरेख में उनका पालन-पोषण हुआ। बाल्यकाल में उनका पढऩे-लिखने में मन नहीं लगता था। वे दिन भर जंगल में पशु-पक्षियों का शिकार करते या मछली पकड़ते थे।
विशाल नदी में तैरना भी उनको प्रिय था। किंतु बाद में दादी की प्रेरणा से वे तेरह साल की अवस्था में गुरु महेंद्र कंदली की टोल पाठशाला में पढऩे गए।
इसके आगे पढ़िए, भाग-1…………
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