
एक समर्पित क्रांतिकारी: सूर्य सेन
सूर्य सेन का जन्म 21 मार्च 1894 को चटगांव के रुझान जिले के नोआपाड़ा गांव में हुआ था। लावारिस सूर्य सेन का लालन-पालन उनके चाचा ने किया था। वर्ष 1916 में एक अध्यापक की बातों ने उनके अंदर क्रांति की भावना भर दी। उस समय वह बहरामपुर कॉलेज से स्नातक कर रहे थे।
एक दिन उनके कालेज के छात्रावास में पुलिस का छापा पड़ा। पुलिस उनके बगल में रह रहे छात्रों की तलाश में थी। छात्रों की तलाशी ने सूर्य सेन का ध्यान आकृष्ट किया। धीरे-धीरे वह भी क्रांतिकारी राजनीति की इस धारा में शामिल हो गए, जिसका उद्देश्य किसी भी साधन को अपनाकर भारत माता को आजाद कराना था। इसके बाद उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह अपना जीवन देश की आजादी को समर्पित कर देंगे।
1918 में उन्होंने चटगांव वापसी की जहां उन्हें चटगांव राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को छुपाने के लिए वह एक स्थानीय नेशनल स्कूल में अध्यापक बन गए। छात्र जीवन से ही एक अलग तरह के क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े सूर्यसेन ने फैसला कर रखा था कि वह ब्रिटिश सरकार की कोई भी नौकरी नहीं करेंगे। स्नातक करने के बाद उन्होंने प्राइवेट स्कूल में अध्यापन का कार्य चुना।
उनके द्वारा प्रथम असहयोग आंदोलन में भागीदारी का प्रभाव चटगांव के लोगों पर पड़ा। उन्होंने प्रभावशाली तरीके से इस आंदोलन का नेतृत्व किया। परिणाम स्वरूप लोगों में सरकारी स्कूल, कॉलेज और न्यायालय आदि का परित्याग कर दिया। उन्होंने स्कूल में स्वदेशी का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया। वह उस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय शिक्षक हो गए तथा लोग उन्हें मास्टरदा के नाम से जानने लगे।
असहयोग आंदोलन में उनकी सहभागिता बढ़ते-बढ़ते जन आंदोलन का रूप लेने लगी। बुलाक ब्रदर्स कंपनी में हुए मछुआरों के आंदोलन का सूर्यसेन और उनके सहयोगियों ने सफलतापूर्वक संचालन किया। नतीजतन कंपनी के जहाज चटगांव के बंदरगाह पर जाम होकर रह गए। असम—बंगाल रेलवे हड़ताल पर भी उनके सफल नेतृत्व का प्रभाव पड़ा।
इसी दौरान कांग्रेस पार्टी और सूर्य सेन के बीच अहिंसा के मसले पर मतभेद हो गया। सूर्यसेन और उनके क्रांतिकारी सहयोगियों का मानना था कि आजादी की मंजिल तक जाने के लिए हर साधन जायज है। अब उनका लक्ष्य था कांग्रेस के अंदर ही समान विचारधारा वाले लोगों को लेकर एक क्रांतिकारी दल का गठन करना, जिसमें बेहतर अनुशासित व समर्पित युवक हों।
तभी क्रांतिकारी उत्साह से लबालब चटगांव की एक लड़की प्रीतिलता वड्डेडर की जान पहचान सूर्यसेन से हुई। हालांकि क्रांतिकारी दल में महिलाओं के शामिल होने का प्रावधान नहीं था, फिर भी प्रीतिलता को उन्होंने पहली लड़की क्रांतिकारी के रूप में शामिल किया। बहुत जल्द ही प्रीति तमाम क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे टेलीफोन, टेलीग्राफ आफिस को ध्वस्त करना और रिजर्व पुलिस लाइन पर कब्जा करना आदि में हिस्सा लेने लगी।
उसने जलालाबाद युद्ध में भी भाग लिया जिसमें उसका काम विस्फोटक पहुंचाना था। बाद में सूर्यसेन के स्कूल में शामिल हो गई। मास्टरदा ने उस समय के अन्य क्रांतिकारियों की तरह प्रीतिलता को भी भूमिगत हो जाने की सलाह दी। इसके बाद प्रीति के साथ एक अन्य विख्यात महिला क्रान्तिकारी कल्पना दत्ता भी भूमिगत हो गई। 1930 में एक अभियान के तहत प्रीति को कलकत्ता कोलकाता के अलीपुर जेल में रामकृष्ण विस्वास से मिलने भेजा गया जो राजनैतिक बन्दी के तौर पर वहां बन्द थे। उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। क्रमश:……..