वन्दे मातरम
Manipur की धार्मिक क्रांति के सूत्रधार गरीबनवाज पार्ट-2
पिछले अंक के पार्ट-1 में आपने पढ़ा……..
पेना या एकतारा पर गानेवाला व्यक्ति नरक में जाएगा। इस राजाज्ञा के फलस्वरूप मणिपुर (Manipur) लोकगीतों के गान की प्रथा समाप्त हो गई, वह शताब्दियों के बाद वर्तमान युग में पुनर्जीवित हुई।
अब इससे आगे पढ़िए...पार्ट-2………….
गंगा-स्नान एवं प्रायश्चित की परंपरा भी महाराजा गरीबनवाज के समय में प्रारंभ हुई। उनके शासन-काल में गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय का वर्चस्व स्थापित हो गया, किंतु उसे दो पक्षों से विरोध का सामना करना पड़ा-एक तो रामानन्दी एवं निम्बार्क आदि संप्रदायों के द्वारा और दूसरा स्थानीय मैत धर्म के कट्टर समर्थकों द्वारा।
इस कड़े विरोध के उपरांत भी चैतन्य संप्रदाय की प्रभुता मणिपुर (Manipur) में स्थापित हो ही गई। यह प्रभाव यहां के जन-जीवन पर आज भी बना हुआ है। बीसवीं शताब्दी में महाराज चूड़ाचांद सिंह के समय में मणिपुरी (Manipur) भाषा में गीत गाने की स्वंतत्रता फिर से दी गई।
परिणामस्वरूप मणिपुरी (Manipur) भाषा-साहित्य के विकास का अवरुद्घ मार्ग पुन: प्रशस्त हो गया। उन्होंने अपने राज कवि से रामायण के कुछ कांडों का मणिपुरी में अनुवाद भी करवाया था। मणिपुरी (Manipur) भाषा को प्रतिबंधित करने वाला राजा अपने दरबारी कवि से संस्कृत से मणिपुरी (Manipur) अनुवाद कैसे करवा सकता था? ये आक्षेप निराधार लगते हैं।
स्थानीय मैते धर्म के आदि देवताओं की पूजा-अर्चना महाराजा गरीबनवाज के समय से निषिद्घ कर दी गई। मणिपुर (Manipur) के इतिहारकारों ने इस घटना को धार्मिक क्रांति नाम दिया है। किसी भी समाज के खान-पान, रीति-रिवाज एवं धार्मिक कृत्यों में इतना महान परिवर्तन शायद ही कभी हुआ हो।
मणिपुर (Manipur) के जीवन की संपूर्ण शैली ही गरीबनवाज के शासन काल में बदल गई। महाराज ने जीवन के अंतिम काल में वर्णाश्रम-धर्म परंपरानुसार सन्यास ले लिया था। महाराजा गरीबनवाज के शासन काल में देश के विभिन्न भागों से धर्म-प्रचारकों के मणिपुर (Manipur) में आने का उल्लेख मिलता है।
सन १७१४ ई० में कृष्णदास और १७१५ ई० में ३९ वैरागियों एवं एक धर्मोपदेशक के असम से यहां आने का प्रमाण मिलता है। सन १७२८ ई० में शान्तिदास अधिकारी नामक गोसांई आए।
शान्तिदास सिलहट श्री हट्ट से आए थे और उन्होंने मणिपुर (Manipur) में श्रीराम की सर्वोच्च देवता के रूप में पूजा करने की परंपरा स्थापित की।
सन १७३७ ई० में महाराज गरीबनवाज को दीक्षा दी थी। गरीबनवाज ने लगभग ४० वर्ष तक मणिपुर (Manipur) पर शासन किया। ये एक महान वैष्णव शासक थे जिनमें क्षत्रियोचित वीरता के साथ वैष्णव विनम्रता का अदभुत सम्मिश्रण था। उन्होंने गरीबनवाज की उपाधि पाई तथा गरीबों के उद्घार के कार्य भी किए।
इस फारसी विरुद को अपनाने से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि मणिपुर (Manipur) पर उस समय मुस्लिम धर्म का प्रभाव प्रारंभ हो चुका था। इनका वास्तविक नाम गोपालसिंह बताया जाता है। असमी इतिहासकार श्री आर० एम० नाथ का मत है कि गरीबनवाज उपाधि इन्हें दिल्ली के सम्राट से प्राप्त हुई थी।
इनके शासनकाल में विभिन्न वैष्णव-संप्रदायों के धर्मप्रचारकों के आने तथा उनको प्रभावित करने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। इस संबंध में विवाद भी है, किंतु इतना सत्य है कि इनके शासन-काल में ही वैष्णव धर्म राज्यधर्म को घोषित किया गया।
वैष्णव धार्मिक ग्रंथों एवं गायन-परंपरा का प्रचलन भी इसी समय हुआ और उसे लोकप्रियता प्राप्त हुई। इनके द्वारा निर्मित मंदिर एवं परंपराएं अब भी उनके वैष्णव भक्त होने के प्रमाण के रूप में बच रही हैं, अन्य साक्ष्य कालकवलित हो चुके हैं।
………………आगे पढ़िए भाग—3
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