झाड़ू फेरने की कला-पार्ट-2
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एक दिन वह झाड़ू लगा रहा था। राजा अभी नींद टूटने से पहले की खुमारी में पड़ा हुआ था। राजा की चारपाई के पास झाड़ू लगाते हुए उसने कहा, दंतिल की मजाल तो देखो अब वह रानी का भी आलिंगन करने लग गया।
यह सुनना था कि राजा झटके से उठ बैठा। उसने पूछा, गौड़म, तू जो कुछ कह रहा था क्या यह सच है?
गौड़म ने कहा महाराज मैं रात भर जुआ खेलता रहा। एक पल के लिए भी सो नहीं पाया। अभी-अभी मुझे झपकी आ गई थी। मैं नहीं जानता मेरे मुंह से क्या निकल गया।
राजा का संदेह और पक्का हो गया। वह जल-भुन कर रह गया। उसने सोचा गौड़म तो रनिवास में आता-जाता रहता ही है। जरूर इसने किसी समय दंतिल को रानी का आलिंगन करते देखा होगा। यदि ऐसा ना होता तो उसने इस तरह का प्रलाप न किया होता।
कहते हैं कि स्वप्न की अवस्था में मनुष्य उन्हीं बातों को देखता और कहता है जिन्हें जाग्रत जीवन में देख या कर चुका होता है। जाग्रत जीवन में तो आदमी झूठ भी बोल सकता है पर स्वप्न में अधचेत होने के कारण उसको किसी बात का बंधन नहीं रहता, इसलिए उसमें वह सच बात को ही प्रकट करता है।
और फिर स्त्रियों का तो स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि वह एक आदमी से बात करेगी और छिपी निगाहों से किसी दूसरे को देखती रहेगी। मन किसी तीसरे में लगा रहेगा। उनको तो किसी से सच्चा प्रेम हो ही नहीं सकता।
स्त्रियों की बुराई के विषय में उसे तरह-तरह के विचार आने लगे और पुराने लोगों के सुझाए हुए तरह-तरह के उपदेश मस्तिष्क में कौंधने लगे। इनका सार यह था कि स्त्रियों की कामुकता का कोई अंत नहीं और उनके उपर भरोसा करना मूर्खता है। वे किसी एक व्यक्ति में अनुरक्त होती ही नहीं हैं।
जैसे आग में जितनी भी लकड़ी डालते जाओ, उसकी तृप्ति नहीं होगी, जैसे समुद्र में जितनी भी नदियां आकर क्यों ना गिरें, वह भरेगा नहीं, जैसे कितने भी लोग क्यों ना मर जाएं, काल की तुष्टि नहीं होगी।
स्त्रियों के सतीत्व के विषय में तो कहा ही गया है कि यदि उन्हें अवसर न मिल पाए, स्थान न मिल पाए या कोई चाहने वाला ना मिल पाए तो ही उनका सतीत्व सुरक्षित रह सकता है।
रहो नास्ति, क्षणों नास्ति, नास्ति प्रार्थयिता नरः।
तेन नारद नारीणां सतीत्वं उपजायते।
स्त्रियों की उन सभी बुराइयों को सोचता हुआ जो कि पुरूषों में विशेष रूप से होती है या पुरूषों में भी होती है, पर वहां बुराई नहीं मानी जाती, राजा दंतिल से नाराज रहने लगा और उसके महल में प्रवेश पर रोक लगा दी।