पंचतंत्र

ढोल की पोल अंतिम किस्त

गतांक पार्ट-3 से आगे अंतिम किस्त

दमनक बोला, ‘‘अरे तू हमारे महाराज पिंगलक को भी नहीं जानता ? कुछ ही देर में तुझे जो मजा चखने को मिलेगा उससे तुझे उनका पूरा परिचय मिल जाएगा।

तूझे दिखाई नहीं देता कि वहां बरगद के पेड़ के नीचे, वन के सभी प्राणियों से घिरे हुए सिंहराज पिंगलक आसन मारे बैठे हुए हैं ?’’

संजीवक को लगा, अब मेरे दिन पूरे हो गए। वह मन ही मन पछताने लगा। उसे न तो कुछ कहते बन रहा था, न कुछ करते। जैसे-तैसे बोला, ‘‘आप को देख कर तो लगता है कि आप बहुत दयालु स्वभाव के हैं और किस मौके पर कैसे बात करनी चाहिए यह तो आप जानते ही हैं।

यदि आप वहां चलने को कह रहे हैं तो चलना तो पड़ेगा ही, पर कृपा करके किसी तरह अपने स्वामी से अभय दान दिलवा दीजिए।’’

दमनक के तेवर तुरंत बदल गए। वह कुछ नरम पड़ते हुए बोला, ‘‘आप का कहना भी ठीक है। कहते हैं कि पृथ्वी की सीमा का पता लगाया जा सकता है, समुद्र और पर्वत का अंत जाना जा सकता है पर इस बात का पता नहीं लगा सकता कि राजा के मन में क्या है।

आप यहीं रहिए। मैं जा कर पहले उनसे अभय दान ले लूं फिर आप को उनके पास ले चलूंगा।’’

अब वह पिंगलक के पास जा कर उससे बोला, ‘‘ महाराज, यह कोई साधारण जीव नहीं है। यह भगवान शंकर का महावृशभ नंदी है। मैने उससे पूछा तो उसने बताया कि शिव जी महाराज ने प्रसन्न हो कर उसे यमुना नदी के किनारे की घास चरने का अधिकार दिया है।

वह तो यहां तक कह रहा था कि शिव जी ने यह पूरा वन उसे अपने विचरण के लिए दे रखा है।’’

पिंगलक फिर डर गया, ‘‘मैं भी सोच रहा था कि देव कृपा के बिना घास खाने वाले एक मामूली पशु में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि वह निडर हो कर वन में इस तरह घूमता और डंकारता फिरे। आप ने उसकी बात सुन कर उससे क्या कहा ?’’

दमनक बोला, ‘‘मैने उससे कहा, ‘यह वन तो मेरे पिंगलक को मिला हुआ है जो स्वंय देवी दुर्गा के वाहन हैं। इस नाते तो आप हमारे अतिथि हुए।

आप सादर उनके पास चलिए, सगे भाई की तरह उनके साथ रहिए, जिधर जी में आए घुमिए-फिरिए और उनके साथ पूरे आदर-सत्कार से जो कुछ आप को रुचे-पचे निडर हो कर खाइए। एक दूसरे की संगत में आप दोनों मौज-मस्ती में अपना समय बिताइए।’

मेरा प्रस्ताव सुनकर वह प्रसन्न हो गया पर साथ ही यह कहा कि इसके लिए तो आप को अपने स्वामी से अभयदान दिलाना होगा। मैं इसलिए आप के पास उपस्थित हूं। अब आप जो भी कहें।’’

पिंगलक बोला, ‘‘ मंत्री जी, आप ने तो कमाल कर दिया। आप जैसा मंत्री तो चिराग ले कर ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। आप ने तो जैसे मेरे मन की बात कह दी हो।

ठीक है, मेरी ओर से उनको कोई खतरा नहीं है। आप उनकी ओर से मेरे लिए भी अभय दान ले कर उन्हें अपने साथ लें आइए।’’

इतना कहने के बाद पिंगलक ने राहत की एक लंबी सांस ली। उसके मुंह से निकला, ’’गहरी पैठ रखने वाले और पहले से जांच परखे हुए मंत्री राज्य को उसी तरह संभाले रहते हैं जैसे पकी, सीधी, बिना कोतड़ या गांठ की और जानी, आजमाई हुई लकड़ी का खंभा छत को संभाले रहता है।’’

उसने दुबारा उसी तरह की सांस ली तो एक और नीतिवाक्य मुंह से फूट निकला, जैसे कोई चिकित्सक कितना बड़ा है इसकी पहचान इस बात से होती है कि वह सन्निपात ज्वर का इलाज कर सकता है या नहीं, उसी तरह मंत्री की समझदारी की पहचान ही यह है कि वह किसी दुश्मन को समझा-बुझा कर राह पर ला सकता है या नहीं।

अक्ल का पता तब चलता है जब काम पड़ता है, यूं तो सलाह देने वाले हजारों मिल जाएगें।

अब दमनक भी उसे प्रणाम करके और जाते हुए सोचने लगा, ‘‘मेरे तो भाग्य जाग गए। मेरा स्वामी मुझ पर इतना रीझ गया है कि वह मेरी हर बात मानता जा रहा है।

ऊपर से मुझे पुरस्कार देने को भी तैयार है। इससे बड़ी बात किसी के लिए हो भी क्या सकती है। कहते हैं जाड़े में आग अमृत के समान है। प्रिय व्यक्ति से भेंट अमृत के समान है। खीर का भोजन के समान और राजसम्मान अमृत के समान है।

अब वह संजीवक के पास जा कर बोला, ‘‘मित्र, मैने आपके लिए अपने स्वामी से अभयदान प्राप्त कर लिया। अब आप निर्भय हो कर मेरे साथ चल सकते हैं।

पर ऐसा न हो कि राजा का विश्वास प्राप्त करने के बाद आप मुझे भूल जाएं। अधिकार के मद में आ कर आप कहीं मनमानी पर न उतर आएं। मैं भी मंत्री बन कर आपसे सलाह ले कर ही कोई काम करूंगा।

यदि हम दोनों अपने वायदे पर कायम रहें और मिल जुल कर चलें तो दोनों ही की चांदी है।’’

दमनक एक क्षण रुका और फिर उसने संजीवक के मन में अपनी बात पक्की तरह उतारने के लिए कहा,‘‘देखो संजीवक, राजकीय ऐष्वर्य और सुख भी शिकार करने जैसा ही है।

शिकार के समय कुछ लोग हंकवा करते हैं और दूसरे लोग शिकार करते हैं, उसी तरह राज सुख में एक व्यक्ति राजा को पुरस्कार और दान आदि के लिए प्रेरित करता है और दूसरा उसको प्राप्त करके उसका उपभोग करता है।

इसलिए हमारी जोड़ी, हम दोनों के फायदे में है।’’

‘‘जो लोग राजमद में आकर छोटे-बड़े किसी का आदर नहीं करते उनकी दशा दंतिल सेठ की तरह होती है और वे उसी तरह अपना अधिकार खो कर दुनिया की निगाह में भी गिर जाते हैं।’’

संजीवक को दलित सेठ की कहानी नहीं मालूम थी। उसने पूछा, ‘‘दंतिल के साथ क्या हुआ था ?’’
दमनक ने कहा, ‘‘बताता हूं।’’

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