झाड़ू फेरने की कला-पार्ट-3
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दंतिल को समझ नहीं आ रहा था कि राजा उसके किस दोष से नाराज हो गया है। वह भी बहुत चिंतित रहने लगा। वह मन ही मन विचार करने लगा और उसे भी तरह तरह के किताबी विचार घेरने लगे।
ऐश्वर्य पाने के बाद कौन है जिसे गर्व न हो ? विषयी व्यक्ति की आपदाओं का कभी अंत हुआ है ? स्त्रियों ने किस व्यक्ति के ह््दय को विदीर्ण नहीं किया है ? राजा का भला कोई कभी प्रिय हुआ है ?
कौन है जिस पर काल की दृष्टि नहीं पड़ी है ? कौन ऐसा याचक है जिसका निरादर न हुआ हो ? कौन सा महान व्यक्ति है जो दुष्टों के बहकावे में आकर सकुशल बच सका है ?
राजाओं के विषय में सयानों ने जो कुछ कहा है वह महिलाओं के बारे में उनके विचारों से काफी मेल खाता है। इस एक मामले में राजा और दंतिल के सोचने में कुछ समानता थी।
वह सोच रहा था, जैसे कौए में पवित्रता नहीं हो सकती, जुआड़ी सत्यवादी नहीं हो सकता, सांप क्षमाशील नहीं हो सकता, स्त्रियों की कामलिप्सा कभी शांत नहीं हो सकती, कायर व्यक्ति में धैर्य संभव नहीं और शराबी में विवेक नहीं हो सकता, उसी तरह किसी राजा से मित्रता भी संभव नहीं है।
परंतु इससे भी उसे शांति नहीं मिल रही थी। आखिर उसी राजा के यहां उसका इतना आदर मान था। वह सोचने लगा कि मैंने राजा के साथ या उसके किसी चहेते सेवक के साथ कभी कोई बुरा बर्ताव तो किया नहीं, फिर वह मुझसे अनमना क्यों हो गया ? बात समझ में नहीं आ रही थी।
एक बार उसने सोचा कि क्यों न दरबार में जाकर राजा से ही पूछ ले कि उससे क्या चूक हुई है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगनी चाही तो दरबानों ने उसे भीतर जाने से ही रोक दिया।
ठीक उसी मौके पर गौड़म भी वहां आ पहुंचा। उसने ठिठोली के स्वर में दरबानों से कहा, तुम लोगों को पता भी है, तुम किसे रोक रहे हो ? यह राजा के लाड़ले दंतिल जी हैं। इन्हें राजा ने अधिकार दे रखा है कि जिसे जी आए इनाम दें और जिसे चाहें उल्टा लटका दें। यदि तुम लोगों ने इन्हें भीतर जाने से रोका तो यह तुम लोगों को धक्के दे कर निकलवा देंगे।