वहॉं पर ये सारी चीजें बहुत थोड़े से प्रयास से ही उपलब्ध हो जाती हैं। यदि बेरोजगारी की दर बढ़ेगी तो निश्चित तौर पर चोरी-डकैती, लूट-पाट, हत्या-बलात्कार आदि की दर भी बढ़ेगी। क्योंकि इसका सीधा समानुपाती सम्बन्ध है। जिसका आंकलन करने की कूबत ना तो नीति आयोग के पास है, ना ही रिजर्व बैंक अथवा विश्व बैंक के पास?
जिनको रोटी नहीं मिलती, वे अन्त में हथियार उठाते ही हैं। और जो केक खा रहे होते हैं, वे अपनी सुरक्षा के लिए हथियार बन्द अपने साथ रखते हैं। कितना बड़ा और निर्मम विरोधाभाष है? हथियार दोनों ही जगह इस्तेमाल हो रहे हैं।
एक जगह पर वह अपने जीवन को जीने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। तो दूसरी जगह दूसरे के जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए। घर में लगी आग सबसे पहले अपने घर को ही जलाती है, उसके बाद पड़ौसी के घर को। उसके बाद आगे बढ़ती है। इसलिए भारत को यदि विश्व का सिरमौर बनना है तो अपनी ही जनता को भुखमरी के कगार पर क्यों पहुंचाया जा रहा है?
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