यहां तक कि मीडिया के एक बड़े हिस्से ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर इस आरोप में सच्चाई कितनी है। इसका तो वायरल टेस्ट कर लिया जाये कि जहां ईवीएम से मतदान हुआ है। वहां तो भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन जहां बैलट पेपर से मतदान हुआ वहां वह पिछड़ क्यों गई?
मीडिया ने भी कौआ कान ले गया की तर्ज पर कान के ही पीछे दौड़ लगा दी। कान को वो देखे भी क्यों? आखिरकार केन्द्र की भाजपा सरकार ने उसके साथ कौन सा अच्छा सलूक किया है। 95 प्रतिशत मीडिया को तो बगैर एक्ट-रूल के ही एक दम गुंण्डई के बल पर प्रकाशन से बाहर कर दिया गया।
मरता क्या ना करता की तर्ज पर उसने भी भाजपा के विरोध को ही अपना कर्तव्य और व्यवसाय बना डाला। इस देश में बहुत बड़ा प्रतिशत उनका है जो रोजगार ना मिलने की वजह से चोरी-डकैती और माफियागिरी के धन्धे में उतर जाते हैं।
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