शंकरदेव की तरह ही माधवदेव भी अध्ययनशील थे। उन्हें भी विरोधियों का सामना करना पड़ा था। शंकरदेव ने जिस प्रकार सबको परास्त कर अपना धर्मध्वज फहराया था, उसी प्रकार शंकरदेव की मृत्यु के पश्चात कोच राजा लक्ष्मीनारायण के दरबार में विरोधियों को परास्त कर माधवदेव ने धर्म को राज धर्म के रूप में स्वीकृत प्रदान करवाई- आमार राज्यत जिमान सत्र आछे सकलोवे माधव मत आचरण करक।
सकलो धर्मर ऊपरे माधवक राजा पातिलो। अर्थात हमारे राज्य में जितने सत्र हैं वे माधव मत का आचरण करेंगे। सब धर्मों पर माधव धर्म है। उन्होंने धर्म प्रचार के निमित्त पच्चीसों धर्माचार्यों को विभिन्न स्थानों पर भेजना, उनसे सम्पर्क सूत्र बनाए रखना, सत्रों की स्थापना का कार्य सौंपा।
इसी के साथ उनके लिए प्रसंगों की व्यवस्था करना, विग्रह-पूजा का निषेध कर ग्रंथ पूजा को महत्वपूर्ण बनाना, व्यक्ति विशेष की जगह पुस्तक विशेष नाम घोषा को स्थानापन्न गुरु घोषित करना, केवलिया भक्तों की परंपरा कायम करना, इत्यादि अनेक ऐसे कार्य हैं, जिनके माध्यम से उनके कार्य कौशल, व्यक्तित्व और महत्व का स्पष्टीकरण होता है।
माधवदेव ने भी अपने गुरु का अनुसरण करते हुए सभी धर्मावलंबियों को एक शरणिया संप्रदाय में सम्मिलित किया। अनेक जनजाति के लोगों को भी आपने एकशरणिया संप्रदाय में सम्मिलित करने के साथ केवलिया भी बनाया।
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