Great Lord Madhavadev का जन्म लेटकुपुखरी में सन 1489 के जेयष्ठ मास की अमावस्या रविवार को हुआ था। महापुरुष शंकरदेव के शिष्य Great lord Madhavadev विविध प्रतिभाओं से युक्त एक विराट व्यक्तित्व के व्यक्ति थे।
किसी समीक्षक ने सही टिप्पणी की है कि असम के वैष्णव-साहित्य गगन में शंकरदेव, “सूर्य” माधवदेव, “चन्द्र” तथा बाकी भक्त कविगण, “तारे” हैं। नव वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में Great Lord Shankardev के प्रधान सहायक थे Great Lord Madhavadev। मधावदेव ने अपने गुरु का आदेश शिरोधार्य कर गुरु निर्देशित धर्म और साहित्य के क्षेत्र में अपूर्व सफलता हासिल की।
1489 में उत्तर लखीमपुर जिले के नारायणपुर के अतंर्गत काचीकटा लेटकुपुखरी ग्राम में जन्म लेने वाले माधवदेव गोविंदपुरी भूआं और मनोरमा के सुपुत्र थे। पहले शाक्त थे, बाद में महापुरुष शंकरदेव के संस्पर्श में आकर वैष्णव बने।
शंकरदेव के साथ कामरुप राज्य के गणककुचि, सुंदरीदिया आदि में स्थायी सत्र स्थापना कर वे अनेक वर्षों तक वहां रहे। इस कालावधि में उन्होंने आदिखंड रामायण कुछ बरगीत और भटिमा, भक्ति-रत्नावली अर्जुन-भंजन चोरधरा नाटक आदि अनेक रचनाएं की।
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