देशभक्तस्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द, पार्ट—1/1

स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।

जानिए उनके बारे में:—

गंगा का जल था कि अंधकार में एक विराट अंधकार का सागर बह रहा था। तट पर एक ओर कुछ बजरे बंधे खड़े थे। उनमें से छनकर मंद सा प्रकाश बाहर आ रहा था। नरेन्द्र ने अपनी दृष्टि फेर ली। दूर धारा के मध्य एक बजरा था, जो न चल रहा था और न ही खड़ा था। वह मुग्ध दृष्टि से उसे देखता रहा और फिर जैसे उसकी आंखों में एक विकट तृष्णा झलकी।

आतुरता में उसने छलांग लगाई। जल ने फटकर उसके लि स्थान बना दिया। नरेन्द्र ने अपने कूदने के स्थान से पांच छह मीटर आगे, जल में से सिर बाहर निकाला। वह वेग से धारा के बीच वाले बजरे की ओर तैरता चला गया। अंत​त: वह बजरे के निकट पहुंचा। बजरे से लगा-लगा कुछ देर तैर कर जैसे उसके विषय में कुछ जानकारी प्राप्त करता रहा। फिर बजरे की पट्टी पकड़, उचककर उपर आ गया।

दो एक छोटे कक्षों को निर्विघ्न पार कर, नरेन्द्र केन्द्र में बने मुख्य कक्ष में, आ गया। मध्य भाग में मूल्यवान कालीन बाघंबर बिछाए, पद्मासन लगाए महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ध्यान कर रहे थे। नरेन्द्र उनके सम्मुख खड़ा हो गया।

“महाशय”

महर्षि का ध्यान टूटा, आंखें खुलीं। वे विचलित थे और कुछ क्षुब्ध भी। उनके सामने जैसे कोई छाया खड़ी थी। उन्होंने अपने निकट रखी लालटेन उठाई। नरेन्द्र के चेहरे पर पूरा प्रकाश पड़ा। सिर से पैर तक भीगा हुआ। कपड़े शरीर से चिपक गए थे। उसके बालों और वस्त्रों से पानी ठपक रहा था और उससे फर्श पर बिछा कालीन गीला हो रहा था।

“नरेन्द्रनाथ दत्त! तुम इस समय यहां?”

“आप मुझे जानते हैं महर्षि?”

“ब्रह्म समाज के उत्सवों में तुम्हें गाते हुए सुना है।” वे बोले “किन्तु आधी रात को गंगा की मध्य धारा में खड़े बजरे में?……तुम…”
“मुझे आपसे एक प्रश्न पूछना है महर्षि! रूक नहीं सका।”
“तैरकर आये हो?”
“इस समय नौका कहां मिलती।”
देवेन्द्रनाथ प्रच्छन्न खीज के साथ बोले, “इतना विकट है तुम्हारा प्रश्न?”
“मेरे जीवन-मरण का प्रश्न है।”
“पूछो।”
नरेन्द्र उनके निकट चला गया। अपनी दृष्टि से जैसे उन्हें चीरते हुए बोला, संसार का लक्ष्य है—इंद्रिय भोग। धन संमत्ति, सोना चांदी, प्रसाद, हाथी घोड़े, दास दासियां, वस्त्राभूषण, भोजन व्यंजन, कामिनी कंचन…. पर मनुष्य के जीवन का लक्ष्य क्या है?”
देवेन्द्रनाथ उसकी ओर देखते रहे, कुछ बोले नहीं।
“क्या मानव जीवन का लक्ष्य है— इनमें लिप्त न होना, इन सबका त्याग? विसर्जन?”
“हां पुत्र ये सब बंधन हैं। वे जीवात्मा को बांधते हैं। भोग से मुक्ति ही जीवन का लक्ष्य है।”
“अर्थात सन्यासी की जीवन। हिमालय की गुफा। वल्कल वस्त्र। सिर पर जटाएं। तपस्या। ईश्वर से प्रेम, ईश्वर की भक्ति। ईश्वर के दर्शन। ईश्वर का साक्षात्कार।…”
“हां! ईश्वर के दर्शन। ईश्वर का साक्षात्कार।”
“आपने ईश्वर को देखा है?” नरेन्द्र ने जैसे झपटकर पूछा।
देवेन्द्रनाथ उसकी ओर देखते ही रह गए, कोई उत्तर दे नहीं पाए।
नरेन्द्र का स्वर कुछ और प्रबल हो गया, “आपने ईश्वर का साक्षात्कार किया है?”
महर्षि ने उसकी ओर देखा और जैसे सायास अपने ह्रदय का सारा माधुर्य वाणी में उंडेला, पुत्र तुम्हारे नेत्र एक योगी के नेत्र हैं।
नरेन्द्र ने भी उनकी ओर देखा उसकी आंखों में निराशा और कठोरता थी।
तुम ध्यान किया करो “पुत्र! मैं तुम्हारे लिए एक महान योगी का भविष्य देख रहा हूं।”
नरेन्द्र की आंखों की कठोरता का भाव और भी सघन हो गया। उसमें निराशा उतर आई। उसने एक शब्द भी नहीं कहा और वापस जाने के लिए मुड़ गया।
“सुनो पुत्र! इस अंधेरे में गंगा में मत कूदना “देवेन्द्रनाथ ने पीछे से कहा।
किन्तु नरेन्द्र रूका नहीं, वह चलता चला गया।
रूक जाओ। मत कूदो,” देवेन्द्रनाथ ने पुन: कहा।
“कूदकर ही खोजना होगा। खोजकर कौन कूदता है,” नरेन्द्र ने जाते-जाते कहा।

…… 2 …..

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

sbobet

https://www.baberuthofpalatka.com/

Power of Ninja

Power of Ninja

Mental Slot

Mental Slot