डॉ0 बाबासाहेब आंबेडकर
संसार के महापुरुषों के चरित्रों का अध्ययन करते समय यह बात ध्यान में अवश्य आती है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता। यह महानता उसे अपने जीवन में त्याग और परिश्रम की भारी पूंजी लगाकर प्राप्त करनी होती है। इसलिए महाभारत में कर्ण के मुख से जो उक्ति कहलवाई गई है, वह अत्यंत उपयुक्त है—
दैवायत्तं कुले जन्म
मदायत्तं तु पौरूषम्
कर्ण को राधे कहकर सूतपुत्र विशेषण से संबोधित कर अपमानित किया जाता था। किंतु जिस कुल में उसका जन्म हुआ उसे भले ही कितना भी हीन घोषित कर दिया गया हो, उसमें कर्ण का क्या दोष है? कर्ण को इसका पूरा बोध था कि अपना पुरुषार्थ दिखाना तो उसके हाथ की बात है।
इसलिए जब भी दानशीलता और पुरुषार्थ की पराकाष्ठा की उपमा देनी हो तो कर्ण को ही याद किया जाता है। अमेरिका और रूस विश्व के दो शक्तिशाली देश हैं। इन दोनों देशों के प्रमुख निर्माताओं के रूप में रूस के एक समय के सर्वेसर्वा स्टालिन और अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का नाम लेना पड़ता है, यह दोनों ही महापुरुष एक साधारण से परिवार में पैदा हुए थे। स्टालिन का जन्म एक चर्मकार के घर में हुआ था। लिंकन भी एक फलों के बाग में बागवानी करने वाली एक महिला की संतान थे। किंतु दोनों व्यक्तियों के विकास में सामाजिक गुलामी की बेड़ियों में बाधा नहीं पहुंचाई थी।
बाबासाहेब आंबेडकर अस्पृष्य मानी जाने वाली महार जाति में पैदा हुए थे। इसलिए उनके लिए जन्म से ही सामाजिक वातावरण लिंकन और स्टालिन से विपरीत था। फिर भी उन्होंने इस देश के जनजीवन में जो क्रांति पैदा की, उसकी कोई मिसाल नहीं है। उसे अद्वितिय ही कहना होगा। अब्राहम लिंकन ने अमेरिका के उत्तरी और दक्षिणी भागों को एकता के सूत्र में बांधकर, वहां के काले और गोरों, दोनों के भेद को सबसे पहले समाप्त किया और अमेरिका के प्रथम बार लोकतांत्रिक राज्य प्रणाली की नींव बना डाली।
इसके विपरीत स्टालिन ने व्यक्ति स्वातंत्र्य का विरोध कर सारे राज्य में समाज सत्तावादी अर्थव्यवस्था को स्थापित किया। डॉ0 आंबेडकर ने प्रजातंत्र और साम्यवाद में समन्वय स्थापित करने का सपना साकार करने का प्रयास किया। उन्होंने हजारों वर्षों से हिंदू धर्म द्वारा मान्य अस्पृश्यता को कानून के बल पर नष्ट करवाया। उन्होंने इस देश में जन-जन में निर्माण किए गए भेदों को मिटाकर समान अधिकारों को स्थापित करने वाला संविधान प्रदान किया और ढाई हजार बरसों के बाद पहली बार प्रजातंत्र के मूल्यों की नींव रखी। ऐसे अभूतपूर्व व्यक्ति के धनी डॉ0 आंबेडकर का जीवन जितना रोमहर्षक और संघर्षमय है उतना ही वह शिक्षाप्रद भी है।
डॉ0 बाबासाहेब आंबेडकर का पूरा नाम भीमराव रामजी आंबेडकर है। उनका पैतृक स्थान रत्नागिरी जिले के मंडएागड तहसील में एक छोटा सा ग्राम आंबवड़े है। भीमराव की माता का नाम था भीमाबाई और पिता जी का नाम रामजी वल्द मालोजी सकपाल। महाराष्ट्र में अपनी वीरता, पराक्रम और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध, प्रभावशाली अस्पृश्य कहलाए जाने वाली महार जाति में पन्होंने जन्म लिया था। भीमराव के दादा मालोजी सेना में हवलदार तक पहुंचे थे। परिवार के लड़के-लड़कियों के लिए दिन में पाठशाला लगती थी और प्रौढ़ लोगों के लिए रात्रि में कक्षाएं चलती थीं। इस पाठशाला में रामजी सूबेदार ने प्रधान अध्यापक के रूप में 14 सालों तक काम किया। जब वे फ़ौज में थे तब, लक्ष्मण मुरबाडकर से उनकी घनिष्टता हुई और मुरबाडकर ने अपनी कन्या भीमाबाई का विवाह राम जी के साथ संपन्न करवाया।
भीमाबाई संपन्न धनी परिवार में पली थीं। परंतु रामजी को पुणे शहर में शिक्षक-प्रशिक्षण केंद्र में शिक्षक का काम करते समय बहुत कम वेतन मिलता था। उसमें से कुछ ही रकम वे भीमाबाई को मुंबई भिजवा सकते थे। इसलिए भीमाबाई ने बहुत ही अभावग्रस्त परिस्थितियों में दिन बिताए। सन् 1890 तक रामजी को तेरह संतानें हुईं। जब रामजी सूबेदार की फौजी टुकड़ी मध्य प्रदेश स्थित महू की छावनी में थी, तब 14 अप्रैल 1891 को भीमाबाई को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। उस नवजात शिशू का नाम भीम रखा गया। परिवारजन उसे भीमा कहकर पुकारा करते थे। एक दो साल बाद रामजी सेना से सेवानिवृत हुए और उन्होंने रत्नागिरी तहसील में कापरापोली गांव में अन्य सेवानिवृत सैनिकों के साथ स्थायी रूप से रहने के लिए प्रस्थान किया।
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