लोकनायक जयप्रकाश नारायण-1
जयप्रकाश ने देश से कुछ मांगा नहीं, सिर्फ दिया ही है। इसलिए देश उनके नैतिक अधिकार को मानता था। चंबल के खूंखार डकैतों को सरकार पकड़ नहीं सकी, लेकिन जयप्रकाश की नैतिकता के वशीभूत होकर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह की कई घटनाएं हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी फरियाद लेकर उनके पास आ जाता था।
एक बार आनंदमार्गियों का एक अंतर्राष्ट्रीय दल उनके निवास पर इसलिए धरना दे रहा था कि उसके अपने नेता श्री पी0सी0 सरकार से जेल में सामूहिक रूप से उनकी मुलाकात करवा दें। इसी प्रकार एक दिन दाउदी बोहरा समाज के लोग बड़ी संख्या में जे0पी0 के पास आए कि उन्हीं के समाज के सुधारवादी लोगों से उनके रूढ़िवाद को जो खतरा पैदा हुआ है, उससे वे उन्हें बचाएं।
जे0पी0 हर व्यक्ति की समस्या से सरोकार रखते थे। बिहार आंदोलन 1974-75 के दौरान एक बार वे मुंगेर गए। दोपहर में वे गायब हो गए और किसी को पता नहीं था कि वे कहां गए हैं। बाद में पता चला कि स्थानीय वेश्याओं ने उन्हें आमंत्रित किया था, जिन्हें संबोधित करने वे गए थे।
जे0पी0 हमेशा समकालीन समस्याओं से जूझते रहे, चाहे वह कश्मीर की समस्या हो या नागालैण्ड के उग्रवाद की, मुजफ्फरपुर के मुसहरी प्रखंड में नक्सलियों के आतंक की हो या बिहार के अकाल संकट की, बंगलादेश या तिब्बत की हो या विश्व में परमाणु युद्ध के बढ़ रहे खतरे की। जे0पी0 एक साथ राजनीति,अंतराष्ट्रीय सम्बन्धों, सहकारिता, शिक्षा, मानवाधिकार तथा अन्य ज्वलंत समस्याओं पर मनन करते रहते थे।
हर समस्या के प्रति उनका दृष्टिकोण मानवीय होता था, जो जाति, धर्म और राष्ट्र की सीमा से परे था। इस कारण कई बार उन्हें देशद्रोही तक कहा गया। दरअसल वे मूलत: मानवतावादी थे। मानव-मानव में कोई अंतर नहीं करते थे। उनका नौकर भी उनके बिछावन पर सो जाता था, किन्तु उन्हें बुरा नहीं लगता था।
उनके मित्रों और सम्बन्धियों को इस पर आपत्ति होती थी, लेकिन वे कहते थे कि वह भी तो आदमी ही है। नौकर को हमेशा सहायक कहते थे नौकर नहीं। उनमें बच्चों की सी सरलता थी। मामूली सी बात पर खुश हो जाते और मामूली सी बात पर रूठ जाते।वे अत्यंत भावुक स्वभाव के थे। एक-दो घटनाओं के जिक्र से उनकी संवेदनशीलता का पता चलता है।
सन् 1959 में समाजवादी आंदोलन का रजत जयन्ती सम्मेलन बम्बई में आयोजित किया गया था। सम्मेलन के पंडाल का नाम उनके एक घनिष्ठ मित्र युसुफ मेहरअली के नाम पर रखा गया था, जिनकी मृत्यु कम उम्र में ही हो गई थी। सम्मेलन मे जे0पी0 को आर्शीवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया। जब वे बोलने के लिए खड़े हुए, तो उनका गला भर आया और आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। बहुत देर तक वे कुछ बोल नहीं पाए और सम्मेलन में शांति छाई रही।
दूसरों की सुविधा को लेकर भी वे बहुत चिंतित रहते थे। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने बताया है कि वे जे0पी0 से 1950 के दशक के प्रारम्भ से जुड़े थे और वे उनसे मिलने उनके गांव जाया करते थे। जे0पी0 अपने अतिथियों की खातिरदारी गर्मजोशी से करते थे और स्वयं उनके आराम की देखभाल करते थे। रात में जब सभी सो जाते थे तो जे0पी0 लालटेन लेकर हर कमरे में जाकर देखते थे कि सबको ठहक बिछावन तथा कम्बल मिले हैं या नहीं।
चन्द्रशेखर एक दूसरी कहानी भी सुना चुके हैं। मोहम्मद मुस्तफा बलिया जिले के एक स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे, जिन्हें अंग्रेजों ने निर्दयतापूर्वक यातना दी थी। वे चाहते थे कि मुस्तफा रो पड़ें, लेकिन मजबूत इरादे वाले मुस्तफा कभी नहीं रोए। आजादी के बाद उन्हें पाकिस्तान से डी0सी0पी0 के पद की पेशकश की गई। किन्तु उन्होंने कहा कि वे किसी भी कीमत पर हिन्दुस्तान नहीं छोड़ेंगे।