लोकनायक जयप्रकाश नारायण-3
वयोवृद्ध समाजवादी नेता श्री देवेन्द्र प्रसाद सिंह ने एक घटना के बारे में बताया। सन 1960 के आस-पास की बात है। जे0पी0 कलकत्ता गए हुए थे। वहां उनसे कुछ सर्वोदयी नेता मिलने गए। देवेन्द्र बाबू भी अशोक मेहता के साथ उनसे मिलने पहुंचे। जे0पी0 ने उन सर्वोदयी नेताओं का परिचय उन दोनों से कराया, लेकिन अशोक मेहता ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया और न ही आधे घन्टे की बात में उनकी ओर कभी देखा।
जे0पी0 को श्री मेहता का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा और उनके जाने के बाद उन्होंने कहा, अशोक को यह क्या हो जाता है? उसने इन लोगों को कोई महत्व नहीं दिया। व्यवहार और नियम के भी वे पक्के थे। उनके सामने यदि कोई व्यक्ति चाय भी आवाज करके पीता तो उनका चेहरा मलिन हो जाता।
सादगी इस हद तक थी कि कभी उन्होंने कार नहीं रखी। आराम से रिक्शे-टमटम से इधर-उधर चले जाते थे। रेल यात्रा में इंटर क्लास से उपर शायद ही चलते थे, उस समय ट्रेन में चार क्लास हुआ करती थी-पहली, दूसरी, इंटर व तीसरी।
रूसो की तरह जे0पी0 की भी मनुष्य की आधारभूत अच्छाइयों में गहरी आस्था थी। वे आश्वस्त थे कि हर व्यक्ति मूलत: अच्छा ही होता है। चंबल के डकैतों के आत्मसमर्पण से यह प्रमाणित भी होता है। उनके इस विश्वास और भावुकता का बहुत सारे लोगों ने गलत फायदा भी उठाया। इस कारण कई व्यक्तियों की धारणा है कि जे0पी0 में आदमी की परख नहीं थी।
ऐसा मानने वालों में उनके कई निकट के सहयोगी और मित्र भी हैं। एक बार नवंबर 1988 में एस0एम0 जोशी ने पुणे में बातचीत के क्रम में बताया कि जे0पी0 को तो आदमी की बिल्कुल ही पहचान नहीं थी। सारे गलत लोग उनसे फायदा उठाते रहे। यही बात जब मोहन धारिया से पूछी गई तो उनका जवाब था, जो स्वयं अच्छा है उसे दूसरा भी अच्छा ही नजर आएगाा।
सर्वोदय के उनके दूसरे सहयोगी आचार्य राममूर्ति ने लेखक के साथ बातचीत में इसका बलपूर्वक खंडन किया कि जे0पी0 को व्यक्ति की पहचान नहीं थी- आप यह कैसे कह सकते हैं? जयप्रकाश आंदोलन, गांधी के किसी भी आंदोलन से ज्यादा शांतिपूर्ण था। केवल सारण जिले के मैरवा में सिपाही छात्रों द्वारा मारा गया जिसके लिए जे0पी0 ने बहुत क्षमायाचना की और मृतक के परिवार को 5000 रूपये दिए। इसके अलावा किसी को भी एक जन आन्दोलन में शामिल होने से नहींं रोका जा सकता है।
1974 में वे इलाज के लिए वेल्लोर गए तो उन्होंने आंदोलन का नेतृत्व चार लोगों के उपर छोड़ा था। इन चार में किसका चरित्र खराब था? यह सही है कि गांधी जे0पी0 से अधिक चतुर थे, परन्तु किसी व्यक्ति की उंचाई उसके अनुयायियों के चरित्र से नहीं मापी जा सकती है। देवेन्द्र प्रसाद सिंह ने बताया कि उन्होंने जे0पी0 से कहा था कि कई समाज विरोधी तत्व भी आंदोलन से जुड़ गए हैं। इस पर जे0पी0 ने कहा कि उन्हें पता है, लेकिन वे कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके पास ज्यादा समय नहीं था।