साइबर संवाद
गर्मी और खस
~ आप लोग तो ग्वालियर / जयपुर खानदान से हैं तो वातानुकूलित कक्ष में ही पैदा लिए होंगे । लेकिन हम मंझौले किसान परिवार वालों के लिए गर्मी के मौसम में खस किसी रईसी से कम नहीं होता था
: तब घर में उषा का फैन होता था , बड़का डैना वाला । फिर खेतान आया । फिर ओरिएंट आया । इत्यादि इत्यादि । लेकिन खिड़की , जंगला, झरोखा से गर्म हवा बदन को छू जाती थी तो इसी खस के जड़/ सूखे घास को बांस के फट्टा में कस कर लटकाया जाता था । थोड़ा पानी छींट देने के बाद गर्म हवा ठंडा में तब्दील और खस की खुशबू कुछ ऐसा ही बचपन था ।
~ फिर कूलर का जमाना आया । तरह तरह का कूलर । एक होता था जिसके बीच में टेबल फैन रख दिया जाता था । चारों तरफ से एक ढांचा । और ढांचा में लगा हुआ खस । क्या कहें उस खुशबू और ठंड का । जमीन पोंछ कर चटाई बिछा कर हाथ में कोई उपन्यास कुंवारा बाप टाइप या फिर मनोहर कहानियां या सत्य कथा
~ उस दौर के फिएट और एम्बेसडर कार में एसी नही होता था तो उसके छत पर खस बिछाया जाता था , हल्का पानी मार के । सीसा डाउन कर के , मुंह बाहर निकाल ठंडा हवा खाइए
: आज भी इस गर्मी के मौसम में खस के शरबत से बढ़िया कुछ नही सीसा के गिलास में हरा हरा खस का शरबत अंग्रेज नही बल्कि मुगल कालीन रईसी का फील देगा ।
~ पहली बार नोएडा में घर बसाए तो पहला गर्मी का सीजन कूलर खरीदे । पूरे शहर का यूनिक और सबसे बड़ा । हेलीकॉप्टर टाइप आवाज करता था : हाएं हाऐं…। चारों तरफ से खस । मेरी रूममेट बोली पड़ोसी क्या बोलेंगे ? इतना आवाज हम बोले की उनको भी तो पता चलना चाहिए की नोएडा में बिहार का कोई भूमिहार आया है बिना बात का हांए हाँए… भाएं भाएं
~ रंजन , दालान
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