साइबर संवाद
रहस्यमयी पत्थर
एक जहाज वाराणसी से बनारसी लंगड़े आमों की खेप लेकर कलकत्ता के लिए निकला । जहाज पर लगभग तीस हजार टन आम लदे हुए थे । आम तौर पर उस जहाज की कैपिसिटी पच्चीस हजार टन ही थी लेकिन कैलकुलेशन मिस्टेक की वजह से ज्यादा माप लोड हो गया और उथले पानी में जहाज फसने के चांसेज थे ।
जहाज के संचालकों ने जब इस ओवर लोड की जांच किया तो पता चला कि जहाज का तक निर्धारित मिनिमम सात मीटर से अभी भी सुरक्षित लेवल पर ही है तो जहाज को रवाना कर दिया गया ।
दिक्कत सिर्फ वाराणसी से पटना के बीच तक ही थी क्योंकि इसी क्षेत्र में गंगा उथली है । पटना से आगे बढ़ते ही कूचविहार से लेकर हल्दिया तक नदी खूब चौड़ी और गहरी भी है । जहाज के ड्राइवर्स जहाज को सावधानी पूर्वक पटना तक ले जाने में कामयाब रहे ।
लेकिन जब वो दरभंगा बेसिन को क्रॉस कर रहे थे तभी जहाज अचानक से खड़ा हो गया । क्रू मेंबर घबड़ा गए और उन्होंने वाटर लेबल नापा तो जहाज अभी भी नदी तल से बारह मीटर ऊपर था । कैप्टन जहाज को बार बार आगे बढ़ाने को कोशिश करता लेकिन जहाज टस से मस नहीं हो रहा था ।
यह बहुत ही असाधारण स्थिति थी । अंततः कप्तान ने गोताखोरों की मदद लिया और उन्हें जहाज की तली में भेजा गया । गोताखोर जब नीचे गए तो उन्हे तली में यह पत्थर मिला । उन्होंने जहाज की तली का पूरा निरीक्षण परीक्षण किया ।
उन्हे कोई समस्या नही दिखी तो वो लोग वापस जहाज पर आने लगे । इस बीच सिर्फ कौतूहल में उन लोगों ने इस पत्थर को साथ रख लिया ।
एक बार जहाज को दुबारा स्टार्ट किया गया और चलाने का प्रयास किया गया । आश्चर्यजनक रूप से वो भारी भरकम जहाज चल पड़ा । तब इन लोगों को इस पत्थर का ध्यान आया कि हो न हो जहाज को रोकने में इस पत्थर का ही हाथ पैर था । सब लोग उलट पुलट कर पत्थर को देखने लगे ।
दिखने में तो यह बिल्कुल सामान्य सा पत्थर था लेकिन इस पर किसी अजीब भाषा में कुछ लिखा हुआ था । उन लोगों ने लाख यत्न किया लेकिन पत्थर पर लिखे शब्दों को ये लोग डिकोड नही कर पाए । थक हार कर इन लोगों ने पत्थर को नदी में फेंक दिया । लेकिन यह क्या ?
पत्थर फेंकते ही जहाज फिर से रुक गया । मजबूरन दुबारा गोताखोर नदी में उतरे और इस पत्थर को वापस खोज कर डेक पर लाया गया । जहाज दुबारा चल पड़ा । अब सभी की दिलचस्पी इस पत्थर में हो चुकी थी ।
कलकत्ता पहुंचने पर पत्थर लेकर कप्तान सबसे पहले जहाज से उतरा और सीधे हावड़ा ब्रिज के नीचे बैठे औघड़ के पास पहुंच पत्थर पर लिखे वाक्य को जानना चाहा ।
औघड़ ने बताया कि इस पर दो लाइनें लिखी हुई हैं । पहली लाइन तो यह है कि
“अबकी बार नहीं होगी नैया पार”
और दूसरी लाइन है, “
भूल जाओ चार सौ पार”
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