साइबर संवाद
आंगनबाड़ी की पंजीरी
जिस गली जाने का नहीं,उसका पता पूंछने का नहीं,ऐसा मेरे बाबाजी बोला करते थे। तब मैं कक्षा दूसरी में रहा होऊंगा,आंगनबाड़ी की पंजीरी फांककर फूफा बोलने की उम्र थी…
खैर,आज वो बात मुझे सच लग रही है,वैसे भी गर्मी के दिन हैं,और गर्मी बढ़ाने की बात हो रही है, वहां मत जाइये,उस गली मत जाइए।
हमारी गली हमारा पप्पू भाई है,जो हमारे बचपन के पंजीरी वाले दिनों से (आंगनबाड़ी) से लेकर जवानी में रोजगार के दिनों की बात कर रहा है।
तानाशाह अपना सब कुछ खो चुका है,उसके फालोवर तो अपना दिमाग़ बेंच कर गोबर खाने की बात कर रहे हैं,उनकी तो कोई बात ही नहीं है।
करोड़ों रोजगार किधर हैं,किसी नाके पर खड़े होकर पता करिये,बेलदारी के काम के लिए एक से बढ़कर एक नवयुवक डिग्री के साथ, डिप्लोमा के साथ लैस है लेकिन रोजगार नहीं है।
अरे आप अपने गांव कस्बे पर ही नजर घुमाएंगे तो हकीकत समझ आ जायेगी, पप्पू भाई ऐसे ही लोगों की बात करता है,अडाणी, अंबानी टाइप माने घंटा कभी भाव नहीं देगा।
राहुल गांधी की बात आम आदमी हर गांव गली तक ह्वाट्सएप के माध्यम से पहुंचा रहा है, इसलिए चुनाव में गर्मी नहीं थी, तानाशाह ने सम्प्रदायिक बात की लेकिन आप अपनी बात करिए,पप्पू की बात करिए।
तानाशाह की पिच पर मत जाइए,उसे वहां अकेले खेलने दीजिए,जिस गली जाने का नहीं उसका पता पूंछने का नहीं,उसकी कोई खबर मत रखिए। वो नीच और नीचे नहीं जायेगा, एकदम ठंडा पड़ जायेगा।
आनन्द यादव रिबार्न
जन विचार संवाद
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