साइबर संवाद

पवनहंश भी बिकने के लिए मुस्तैद

जिन 23 कंपनियों को बेचने की सूची जारी हुई है,उसमे एक नाम पवनहंस का भी है…।।

पवनहंस, मूल रूप से हेलीकाप्टर सर्विस प्रदाता कम्पनी है, इसके पहले कोई भी ऐसी भारतीय कम्पनी नही थी जो कि हेलीकाप्टर का प्रचालन करती हो।

पवनहंस का निगमन 15 अक्टूबर 1985 को किया गया था और इसकी पहली वाणिज्यिक उड़ान ओएनजीसी के लिए 6 अक्टूबर 1986 को सम्पन्न हुई थी। अपनी पहली उड़ान के एक वर्ष के भीतर ही पवनहंस ने ओएनजीसी में सेवाएं प्रदान कर रहे सभी विदेशी हेलीकॉप्टर प्रचालकों का स्थान ले लिया था। जिसके फलस्वरूप अतिमूल्यवान विदेशी मुद्रा का बाहर जाना बन्द हो गया और भारत के खजाने में विदेशी मुद्रा का इजाफा होने लगा।

पवनहंस ने अपने निगमन के बाद से कभी पीछे मुड़कर नही देखा, दिन प्रतिदिन आगे ही बढ़ता गया, पूरे एशिया में पवनहंस का कोई मुकाबला नही है, क्योकि इसके पास 7 लाख घण्टे उड़ान का व्रहत अनुभव है….।।

पवनहंस के 51 फीसदी शेयरों का स्वामित्व भारत सरकार के पास है और 49 फीसदी शेयरों का स्वामित्व ओएनजीसी के पास है।

पवनहंस अपने निगमन के बाद से कभी घाटे में नही गयी। वर्ष 2013-14 तक सरकार को 223.69 करोड़ का लाभांश भी दिया….।।

2014 में सरकार बदल गई, केन्द्र में भाजपा की सरकार आ गई और उसके प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र दामोदर दास मोदी। “देश नही बिकने दूंगा” का आश्वासन देने वाले मोदी जी ने केंद्रीय सत्ता में आते ही पता नहीं किन कारणों से सरकारी संस्थानों को प्राइवेट लोगों के हांथ में बेचने के लिए दृढ़ संकल्पित हो गये। इनके आने के बाद पहली बार पवनहंस 2018-19 में 89 करोड़ के घाटे में चली गयी और करोड़ो के कर्जे से दब गई…..!!

ऐसा कैसे हो सकता है कि जो कम्पनी अपने निगमन के बाद से लगातार सरकार को लाभांश देती आयी हो वो अचानक घाटे में चली जाए, कर्जे से दब जाए, कर्मचारियों को सेलरी देने के लाले पड़ जाएं……।।

अब ये सब जानबूझकर हो रहा है, अथवा सही में, ये कैसे समझा जाये। लोगों की यह धारणा बलवती होती जा रही है कि यही तो मोदी जी का मास्टरस्ट्रोक है, जिसके तहत उन्होंने अपने चुनिंदा पूंजीपति घरानों को लाभ पहुँचाने के लिए पवनहंस को मार्केट से धीरे—धीरे खत्म करना शुरू किया ताकि भविष्य में इसे कौड़ियों के भाव बेच दिया जाए जिससे निजी घराने हेलीकाप्टर प्रचालन में अपना एकाधिकार जमा सकें….।।

लोगों का कहना है कि मोदी जी ने इसे बर्बाद करने और नीलामी की राह आसान करने के लिए 2014 से ही प्रयास शुरू कर दिये थे। चूंकि मात्र 51% फीसदी शेयर ही सरकार के पास थे बाकी 49% फीसदी ओएनजीसी के पास थे,तो थोड़ी सी अड़चन आ रही थी। फिर उन्होंने अपने विश्वसनीय चेले संबित पात्रा को ओएनजीसी का डाइरेक्टर बना दिया ताकि पवनहँस को दिवालिया बनाने में कोई अड़चन न रह जाये……।

और अंततः आज वही पवनहँस जो वर्ष 2013-14 तक भारत सरकार को भरपूर लाभांश देती रही, अतिमूल्यवान विदेशी मुद्रा की बचत करती रही, वही पवनहंस मोदी जी के मात्र छह साल के कार्यकाल में दिवालिया होकर बिकने वाले सरकारी उपक्रमों की लिस्ट में शुमार हो गयी……।।

सुनील सिंह की फेसबुक वॉल से

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