साइबर संवाद

सुखद एहसास कीजिए कि हमारा आने वाला भारत कैसा होगा

है तो कॉपी पेस्ट, लेकिन वर्तमान पर शानदार विश्लेषण है’ पढ़िए अच्छा लगेगा!————-

कल्पना कीजिए उस देश की, जहाँ दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति होगी, जगमगाता हुआ भव्य राम मंदिर होगा, सरयू में देशी घी के छह लाख दीयों की अभूतपूर्व शोभायमान महाआरती हो रही होगी। सड़कों, गलियों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर जुगाली और चिंतन में संलग्न गौवंश आराम फरमा रहे होंगे।

धर्म उल्लू की तरह हर आदमी के सिर पर बैठा होगा।

लेकिन-अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं होगी, दवाइयां, बेड, इन्जेक्शन भी नहीं होंगे। दुधमुंहे बच्चे बगैर आक्सीजन सिलिण्डर के दम तोड़ रहे होंगे। मरीज दर-बदर भटक रहे होंगे। देश में ढंग के स्कूल कॉलेज नहीं होंगे, बच्चे कामकाज की तलाश में गलियों में भटक रहे होंगे। कोविड-19 जैसी महामारियां देश पर ताला लगा रही होंगी और देश का प्रवासी मजदूर भूखे-प्यासे सैकड़ों मील की पैदल यात्रा कर खाने-खाने को मोहताज होकर दम तोड़ रहा होगा। आम जन घुट-घुट कर जी रहा होगा और तिल-तिल कर मर रहा होगा।

बेटियां स्कूलों, कॉलेजों, मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थाओं में न होकर सिर्फ़ सड़कों पर दौड़ रहे ट्रकों के पीछे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारों में ही सिमटी होंगी। और न्याय, आम पहुंच से दूर एक महँगी विलासिता की दिव्यमान चीज बन चुकी होगी। बेटियों, महिलाओं के हत्यारों, बलात्कारियों और दूसरे जघन्यतम अपराधियों को पुलिसबल गार्ड-ऑफ़-ऑनर पेश कर रहे होंगे। अलग-अलग वेषभूषा में मुनाफ़ाखोर और अपराधी-प्रवृत्ति के लोग देश के सम्मानित और गणमान्य नागरिक होंगे और मीडिया उनके लिए टीवी चैनलों पर जय-जयकार का उदघोष कर रही होगी।

विश्वस्तर के उत्कृष्ट शिक्षा संस्थान नहीं होंगे, या होंगे तो स्कूल आफ इम्पॉरटेन्स के नाम पर जिसके पास कम्पनी में ​रजिस्टर्ड एक नाम होगा, ना उसके पास कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर होगा ना ही कोई भूखण्ड अथवा भवन होगा। फैकल्टी तो दूर की कौडी होगी। अस्पताल नहीं होंगे, बेहतरीन किस्म के, यानी इंडियन इन्सटीट्यूट आफ साइंश (IISc) जैसा टाटा का स्थापित किेया हुआ एकमात्र शोध संस्थान और प्रयोगशालाएं भी नहीं होंगी, भूख और बेरोजगारी से जूझती जनता के लिए चूरन होंगे, अवलेह और आसव होंगे, सांस रोकने-छोड़ने के करतब होंगे, अनुलोम-विलोम की कलाबाजियां होंगी, काढ़े होंगे और इन सबसे ऊपर, कोई शातिर तपस्वी का भेष धरे उद्योगपति होगा, जो धर्म, अध्यात्म, तप-त्याग, और दर्शन की पुड़ियाओं में भस्म-भभूत और आरोग्य के ईश्वरीय वरदान लपेटकर आपकी जिन्दगी लूट रहा होगा। लेकिन इसी के साथ हमारे पास इस देश की थाथी होगी, गायों, गोबर और गोमूत्र की।

सुव्यवस्थित और गौरवशाली राष्ट्रीयकृत बैंक भी नहीं होंगे, बीमा कंपनियां भी नही होंगी। महारत्न और नवरत्न कहे जाने वाले सार्वजनिक उपक्रम भी नहीं होंगे। अपनी-सी लगती वह रेल भी नहीं होगी जिसपर गरीबों को लिखा दिख जाता था कि रेलवे आपकी सम्पत्ति है। तब उसपर सीधे-सीधे लिखा दिख जायेगा कि ये किसकी कम्पनी है और इसे नुकसान पहुंचन पर आपकी उम्रकैद हो सकती है जिसकी सुनवाई कोर्ट में भी नहीं हो सकती है।

देश एक ऐसी दुकान में बदल चुका होगा, जिसकी शक्ल-सूरत किसी मंदिर जैसी होगी। देश ऐसा बदल चुका होगा, जहाँ युवकों के लिए रथयात्राएं, शिलान्यास और जगराते ही होते दिखाई देंगे। गौ-रक्षा दल होंगे, और गौरव-यात्राएं होंगी। मुंह में गुटके की ढ़ेर सारी पीक सहेजे बोलने और चीखने का अभ्यास साधे सैकड़ों-हजारों किशोर-युवा होंगे, जो कांवर लेकर यात्रा कर रहे होंगे, या किसी नए मंदिर के काम आ रहे होंगे और खाली वक्त में जियो के सिम की बदौलत पुलिया पर बैठे IT Cell द्वारा ठेले गए स्रोत से अपने जीविकोपार्जन का सहारा पाये होंगे।

शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सामाजिक उन्नति के हिसाब से हम अंग्रेजों के शासनकाल में विचर रहे होंगे। तर्क, औचित्य, विवेक से शून्य होकर पड़ोसी की जाति, धर्म, गोत्र जानकर खुन्नस निकाल रहे होंगे अथवा हुलस रहे होंगे। हम भूखों मर रहे होंगे परंतु अपने हिसाब से अपनी संतुष्टिभर के लिए विश्वगुरु के अंदाज में ठसका लगा रहे होंगे। हमारा आर्थिक विकास इतना सुविचारित होगा कि दुनिया का सस्ता डीजल और पेट्रोल हमारे यहां सबसे महंगा होगा। खाने पर तो जीएसटी दे ही रहे होंगे, लेट्रिन/शौचालय (Latrine) पर भी 24 प्रतिशत की जीएसटी दे रहे होंगे। इससे भी इतर कोविड-19 जैसी महामारी के दौर में भी हम मास्क, सैनेटाइज़र और पीपीई किट पर जीएसटी देने को मजबूर होंगे।

हमारी ताक़त का ये आलम होगा कि कोई कहीं भी हमारी सीमा में नहीं घुसा होगा, फिर भी हमारे बीस-बीस सैनिक बिना किसी युद्ध के वीरगति को प्राप्त हो रहे होंगे। दुश्मन सरहद पर खड़ा होगा और हम टैंकों को जे0एन0यू0 सरीखे विश्वविद्यालयों में किये होंगे।

कोई खास मुश्किल नहीं है। बस थोड़ा अभ्यास करना होगा, उल्टे चलने, हमेशा अतीत की जुगाली करने और मिथकों में जीने की आदत डालनी होगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, रोजगार, न्याय, समानता और लोकतंत्र जैसे राष्ट्रद्रोही विषयों को जेहन से जबरन झटक देना होगा। अखंड विश्वास करना होगा कि धर्म, संस्कृति, मंदिर, आरती, जागरण-जगराते, गाय-गोबर, और मूर्तियां ही विकास हैं। बाकी सब भ्रम है । यकीन मानिए शुरू में भले ही अटपटा लगे, पर यह चेतना बाद में बहुत आनंद और सुख की अनुभूति करायेगी।

नरेश दीक्षित जी, वरिष्ठ पत्रकार

ने इसे किस महानपुरूष के वॉल से लिया है, हमें जानकारी नहीं है, लेकिन हम उन्हीं की वॉल के सौजन्य से इसे प्रकाशित कर रहे हैं तथा हमारी टीम उनका भी आभार प्रगट करती है और साभार उसे यहां प्रकाशित कर रही है। भविष्य में यदि मूल लेखक का पता चलता है तो हम उनका नाम ससम्मान अपडेट करने का वचन देते हैं।

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