वन्दे मातरम
मौत पर मुस्कुराने वाले Revolutionary रोशन सिंह
रोशन सिंह काकोरी कांड के चौथे शहीद थे। इनका जन्म 1894 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। ये मिडिल तक ही पढ़े थे, मगर इन्होंने प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी पकड़ ली थी। ये क्रांतिकारी आंदोलन से भी जुड़े थे।
इन्होंने आजादी से जुड़े आंदोलन के लिए शेरगंज बिकाहपुरी और मैनपुरी डकैती में सक्रिय भूमिका निभाई। जब असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई तो रोशन सिंह ने इसकी सफलता के लिए जिला शाहजहांपुर और बरेली में काफी कुछ किया।
इस दौरान बरेली में छिटपुट गोलीबारी हुई। रोशन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद वह काकोरी ट्रेन कांड से जुड़ गए। इस मामले में गिरफ्तार सभी क्रांतिकारियों के मुकाबले रोशन सिंह शरीरिक रूप से सबसे अधिक मजबूत थे।
रोशन सिंह के बारे में जज हेमिल्टन ने कहा रोशन बमरौली डकैती में सबसे आगे थे। अत: धारा-121-A के तहत उन्हें पांच वर्ष कैद की सजा दी जाती है। वे उस गांव के बारे में सब कुछ जानते थे। इस संबंध में दो लोगों ने गवाही भी दी है कि उस दिन रोशन सिंह पिस्तौल लेकर जा रहे थे।
इसलिए धारा-396 के तहत वह मौत की सजा के हकदार हैं। दोनों ही सजा एक साथ लागू की जाएंगी। फैसले के खिलाफ वह एक हफ्ते के अंदर अपील कर सकते हैं। रोशन सिंह की मौत की सजा सुनते ही सभी हैरान रह गए। उन्हें महसूस हो रहा था कि रोशन सिंह के साथ अन्याय हुआ है।
वे सभी क्रांतिकारियों में सबसे उम्रदराज थे तथा उनका अपराध भी बहुत कम था। यहां तक कि वह घटनास्थल पर भी मौजूद नहीं थे। फिर भी उन्हें फांसी दी जा रही थी। रोशन सिंह अंग्रेजी नहीं जानते थे। जब उन्होंने अपने साथियों को हैरान देखा तो वह कुछ परेशान हुए।
उन्होंने पास खड़े विष्णु शरण दुबलिश से पूछा, दुबलिश जज ने पांच साल के अलावा और क्या कहा है? दुबालिश ने कहा रामप्रसाद जी और लाहिड़ी के साथ आपको भी मौत की सजा दी गई है। यह सुनते ही उनके चेहरे पर एक अजब सा तेज उभर आया और वह खुशी से उछल पड़े।
वह बिस्मिल, अशफाक और लाहिड़ी की तरफ देखकर बोले-तुम अकेले जाना चाहते थे। फिर उन्होंने जज की तरफ मुड़ते हुए कहा, महाशय मुझे नई जिंदगी देने के लिए धन्यवाद। आपने इन अनुजों के आगे मेरी वरिष्ठता कायम रखी।
जेल में रहते हुए उन्होंने बांग्ला भाषा का अध्ययन किया। एक दिन बिस्मिल ने उनसे पूछा, ठाकुर बांग्ला सीखने का क्या फायदा? वह भी तब जब तुम्हें फांसी हो जाएगी। ठाकुर रोशन सिंह ने कहा- पंडि़त जी, यदि यह मेरी इस जिंदगी में मदद नहीं करेगी तो अगली जिंदगी में काम आएगी।
जेल में उन्होंने बातचीत करना कम कर दी थी। वह मराठी समाचार पत्र का आनंद उठाते थे। एक दिन उनके वकील ने दया याचिका के खारिज हो जाने की सूचना दी। उन्होंने बड़ी शांतिपूर्वक कहा ठीक है। कुछ दिन बाद जब जेल अधीक्षक ने भी उन्हें यही सूचना दी तो उन्होंने फिर उत्तर दिया ठीक है।
अपनी मौत से एक दिन पहले उन्होंने अपने मित्र को कहा तुम मेरी चिंता मत करना, भगवान सब का ख्याल रखते हैं। 19 दिसंबर,1927 को इलाहाबाद जेल में रोशन सिंह को फांसी दी गई थी। 13 दिसंबर को उन्होंने अपने दोस्त को खत लिखा था-कि इस सप्ताह मुझे फांसी दे दी जाएगी।
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वह मेरे प्रति तुम्हारे प्रेम का पारितोषिक दे। तुम्हें मेरे लिए दुखी नहीं होना चाहिए। मेरी मौत खुशी का सूचक है। जिसने भी जन्म लिया है, उसे मरना है, यही जीवन का तथ्य है।
व्यक्ति को किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखना चाहिए तथा हमेशा परमेश्वर को याद रखना चाहिए। मेरे पास भगवान को धन्यवाद देने के लिए पर्याप्त समय है। अब मेरी कोई इच्छा अधूरी नहीं रह गई है।
हाथ में भगवत गीता और चेहरे पर मुस्कान लिए रोशन सिंह फांसी के तख्ते पर चढ़ गए। उस समय वह वंदेमातरम् और ओम् का उच्चारण कर रहे थे। इस तरह धरती मां का एक और सपूत आजादी की बलि बेदी पर अपने को न्यौछावर कर गया।
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