
साइबर संवाद
मृत्यु एक डरावना लेकिन अंतिम सत्य है जो कभी नहीं बदलता
मृत्यु एक डरावना लेकिन अंतिम सत्य है जो कभी नहीं बदलता है, फिर भी हम सबकी सोच और कोशिश रहती है कि यह मृत्यु भी प्रकृति के नियमों का पालन करे। वैसे तो मृत्यु किसी भी रूप में स्वैच्छिकतः स्वीकार नहीं हो पाती लेकिन असमायिक या अकाल मृत्यु तो कभी भी नहीं किसी भी स्थिति में नहीं।
बुरे से बुरे कर्म या स्वभाव वाले व्यक्ति की भी ऐसी असमय मृत्यु हृदय को अथाह वेदना देती है। आज ऐसी ही व्यथित कर देने वाली खबर आई कि “दंगल” ने अपने कोच और पहलवान को खो दिया। महज 42 वर्ष की आयु इस सफर पर जाने की नहीं होती बल्कि इस आयु में तो व्यक्ति अपने नाम और कैरियर के लिये संघर्ष करता है।
कुछ तो हुनर था उनमें कि इस अल्प आयु में भी वे देश की जानी मानी शख्शियत (पत्रकार तो नहीं कह पाऊंगी) बन गए। हालांकि अपने कर्मक्षेत्र (पत्रकारिता) में वे थोड़ा पीछे ही रह गए । वो क्या है अन्य न्यूज चैनल की क्या कहें आज तक में भी वो अपने कर्मक्षेत्र में अन्य चाटुकारों से बहुत पीछे थे। मुख्य मुकाबला तो अर्णव, सुधीर, रजत, अंजना, अमिश आदि में ही रहा, फिर भी ये एक सशक्त दावेदार रहे हैं इससे इंकार नहीं।
पत्रकारिता के पतन और व्यक्ति की सोच को कट्टरता के मुहाने तक पहुँचाने में इनका भी तो कुछ योगदान था। कोरोना (कोरोना कम स्वार्थी सत्ता) के कारण इनका जाना न तो पहला है और न ही आखिरी है। आज इनके और इन जैसों के फैलाये हुए विष का नतीजा ही है कि हम हद से ज्यादा संवेदनशील भारतीयों की शत प्रतिशत संवेदना इनके लिये नजर नहीं आई।
हमें इनके निधन की खबर सुनकर राजीव त्यागी का याद आना इस बात की पुष्टि करता है। खैर न तो समयचक्र वापस घूम सकता है और न ही प्रकृति के इस निर्णय को बदला जा सकता है। इस दुखद घटना से केवल सबक लिया जा सकता है कि जाना तो सभी को है, तो जाने से पहले कार्य ऐसे किएं जाएँ कि मृत्यु किसी के उत्सव का बायस न बने।
रोहितजी आप फिर भी असुर घृणा (अर्णव,सुधीर और रजत ) से तो बेहतर ही थे। आप कैसे पत्रकार थे इसको परे हटाइये लेकिन एक अल्प आयु के व्यक्ति का ऐसे जाना बेहद दुखद है। आपके परिवार को यह अथाह वेदना सहन करने की ईश्वर शक्ति दे।
यह और भी दुखद महसूस होता है जब याद आता है कि जिस सिस्टम को आपने सदैव डिफेंड किया उसी सिस्टम की कमी कहीं न कहीं उत्तरदायी है आपके यूं असमय जाने की। दुख सभी को है पर कमी सत्ता को ज्यादा खलेगी, तुम्हारे यूं चले जाने को ये सत्ता किस प्रकार सहेगी। काश पत्रकार से पहले बेहतर इंसान बन जाते आप, फिर भी व्यक्ति के रूप में याद सदा दिल में बनी रहेगी।।
रोहित – अलविदा
आयुषी बंसल द्वारा जन विचार संवाद ग्रुप की वॉल से साभार
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