देशभक्तलोकनायक जयप्रकाश

लोकनायक जयप्रकाश नारायण-2

चन्द्रशेखर ने उनका परिचय जे0पी0 से कराया। तुरन्त जे0पी0 ने तत्कालीन रेलमंत्री लालबहादुर शास्त्री के नाम एक व्यक्तिगत पत्र लिखा कि मुस्तफा को कोई नौकरी दी जाए। कुछ समय बाद जे0पी0 की भेंट चन्द्रशेखर से आजमगढ़ में हुई और चन्द्रशेखर से मुस्तफा के बारे में पूछा। इस पर जब चन्द्रशेखर ने उन्हें बताया कि मुस्तफा को अभी तक कोई नौकरी नहीं मिली है तो उन्होंने एक अन्य केन्द्रीय मंत्री रफी अहमद किदवई को खत लिखा, अगर मुस्तफाा जैसे नौजवान को आजाद भारत में नौकरी नहीं मिलती है तो आजादी निरर्थक है।

यदि आप नहीं कर सकते हैं तो मैं भाई साहब से बात करूूंगा। तब देवबंद चीनी मिल में 150 रू0 प्रतिमाह पर उन्हें नियुक्त किया गया। उनके दिल में इतनी करूणा थी कि किसी की पीड़ा देखकर वे द्रवित हो जाते थे। एक बार वे केदारनाथ गए। सर्वोदयी नेता और समन्वय आश्रम, बोधगया के संस्थापक श्री द्वारको सुंदरानी भी उनके साथ थे। सुंदरानी जी ने बताया कि वहां चारों ओर बर्फ बिछी हुई थी।

एक दिन सबेरे एक जमादार नंगे पांव पाखाना साफ करने उनके कमरे में गया। जमादार को उस स्थिति में काम करते देखकर उनकी आंखें छलछला गईं, और वे बोले, देखिए आजादी के इतने दिनों बाद भी इन लोगों की यही स्थिति है। मैंने भी अमेरिका में ऐसे काम किए थे, लेकिन मैं बूट और गर्म कपड़े पहनकर काम करता था। पत्नी प्रभावती के निधन के लगभग एक वर्ष बाद तक वे उन्हें याद करके रो देते थे।

श्ष्टिाचार की तो वे प्रतिमूर्ति थे। अपने घर आने वालों का दिल खोलकर स्वागत करते। कई बार ऐसा होता था कि उन्हें गाड़ी पकडनी होती और निकलते वक्त ही कोई आ जाता। फिर भी वे उसे जाने को नहीं कहते थे और उससे बातें करने लगते थे। इससे कई बार गाड़ी छूट भी जाती थी। युसुफ मेहरअली ने बड़े प्यार से उनके बारे में लिखा है, जे0पी0 के दो दुर्गुण हैं, जो मैं ढूंढ़ पाता हूं। पहला, खूबसूरत शेविंग सेट का उनके पास होना।

एक मंद-मंद मुस्कान के साथ वे आपसे कहेंगे कि यह शहर में बेहतरीन है। जब किसी का चेहरा जयप्रकाश के जैसा सुंदर हो तो इसे माफ किया जा सकता है।मैं नहीं समझ पा रहा कि दूसरे का वर्णन में कैसे करूूं जब तक इसे मैं समय-बोध की कमी न कहूं क्योंकि इसे सीधा समय का पाबंद नहीं होना कहना सपाट होगा। सचाई यह है कि जयप्रकाश अच्छी बहस बहुत पसंद करते थे, विशेषकर एक तेजस्वी विरोधी के साथ और ऐसा करने में वे आधा दर्जन महत्वपूर्ण मुलाकातें भी भूल जाते थे। लेकिन उस समय जब देर से आते थे तो उनके चेहरे पर ऐसी सच्ची विवशता होती थी कि वे देर से आने के कारण ज्यादा प्यारे लगते थे।

उन्हें हर समय यह चिंता रहती थी कि किसी को उनसे कोई दुख ना हो। इसके साथ ही वे यह प्रयास भी करते थे कि कोई उनके समक्ष अपने को छोटा महसूस ना करे। जब उनके सचिव या अन्य कोई व्यक्ति उन्हें कुछ लिखकर देते थे और जे0पी0 उसमें कोई अशुद्धि पाते थे तो वे यह नहीं कहते थे कि यह गलत है, बल्कि कहते थे कि यहां पर मुझे थोड़ा संदेह है, इसलिए डिक्शनरी देख लीजिए।

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