सिक्ख समुदाय से बहुत उम्मीदें पालने को जी करता है
क्या सिक्ख समुदाय भारत की शिक्षा व्यवस्था को बदलने के लिए नेतृत्व की भूमिका में नहीं आ सकता? कि पूरा भारत सरकार के समानांतर एक नागरिक सरकार चलाए और केवल शिक्षा व्यवस्था पर काम करे। सबको समान और निः शुल्क अनिवार्य शिक्षा ।
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सरकारों की भी एक भूमिका हों सकती है क्योंकि सरकारों में भी तो बेहतर लोग बैठे पड़े हैं जो पंगु कर दिए गए हैं मसलन जमीन मुहैया कराना बिजली पानी आदि
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वैसे तो सिक्ख समुदाय की दरियादिली के किस्सों से पूरी दुनियां ही अवगत है। भारत के एक संपन्न राज्य के रूप में पंजाब को जाना जाता है। कृषि उत्पादकता के लिहाज से अपनी एक जगह बनाया है इस राज्य ने। बाहरी राज्यों से आने वाले मजदूरों से भी इन सिक्ख परिवारों के किस्से सुने जा सकते हैं कि ये अपने खेतिहर मजदूरों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं।
उनके साथ परिवार के सदस्यों के जैसा सुलूक करते हैं, आदि आदि। और भी बातें जो समय-समय पर सामने आती ही रहती हैं। जैसे व्यक्तिगत तौर पर व्यवहार कुशलता, सामाजिक सहभागिता और इनका धार्मिक सेवाभाव।
जहाँ हमारे मंदिर, दरगाह और चर्च अथाह दौलत से पटे पड़े हैं, लेकिन उनके सेवाभाव का दायरा बहुत ही सीमित देखा जाता है। वही दूसरी ओर गुरुद्वारों के द्वारा किए गए सेवाभाव से पूरी दुनियां ही गदगद रहती है। इन्होंने सीरिया जैसे सबसे विवादित और कठिन समय और देश में भी अपनी सेवाएं दी हैं।
वर्तमान में दिल्ली के बंगला सहिब में शुरू की गई चिकित्सीय सेवा भी आपको हैरत में डाल देगी। जबकि देश के धनपतियों द्वारा संचालित चिकित्सा सेवाएं आपको भिखारी बना देने पर आमादा हैं। वहीं आप हैरत में पड़ जाएँगे कि यहाँ आप सिटी स्कैन मात्र पचास रुपए की सेवा शुल्क पर करा सकते हैं।
अभी महाराष्ट्र के नांदेड गुरुद्वारा श्री तख्त साहिब का निर्णय कि वो दान में प्राप्त सारा सोना एक सेवार्थ अस्पताल बनाने में प्रयुक्त करेंगे। यह बात भी अपने आप में अनूठी है। और समाज के धार्मिक वर्ग की सोच से भी बेहद उम्मीदें उभरकर सामने आती हैं। जबकि कहना न होगा कि हमारे देश के हिन्दू-मुस्लिम समाजों के धर्मगुरु बहुत ही संकीर्ण विचारों वाले होते हैं।
किसान आंदोलन ने सिक्ख समुदाय के एक और खास उजले पक्ष को सामने रखा है कि इतने बड़े और दीर्घकालिक आंदोलन को सुचारू रूप से चलाने में इस वर्ग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण एवं सराहनीय है। जबकि सारे उत्तरी भारत से हम परिवर्तन के लिए लगभग निराश हैं, तब पंजाब और हरियाणा की इस आंदोलन में भूमिका उम्मीद के ढ़ेरों रास्ते खोलती है।
यही वो बिंदु है जिसपर आज अचानक मेरे भीतर ये बात कौंधी कि अगर यह समाज भारत के शिक्षा व्यवस्था पर अपना ध्यान केंद्रित कर ले, तो हम दस साल में सरकारों की बिना किसी महत्वपूर्ण भूमिका के भी, भारत को वह बना लेंगे जिसके बल पर हर सपना पूरा किया जा सकता है। हम विश्वगुरु बन सकते हैं। हम दुनियां की भुखमरी मिटा सकते हैं हम दुनियां से युध्द का नामोनिशान मिटाने की पहल कर सकते हैं हम दुनियां में हर उस बात के पैरोकार हो सकते हैं, जिसकी जमीन विश्व मानवता है।
इस काम में हमें अगर आज किसी बात की कमी दिखती है तो वह है नेतृत्व की बात। वरना देश से लेकर विदेशों में बिखरे हमारे लोग देश के लिए सहयोग करने में अप्रतिम हैं। चाहे वो किसी भी धर्म या राज्य से ताल्लुक रखते हों। बस कोई उनके उम्मीद और विश्वास पर खरा तो उतरे।
अगर हम चाहें तो भारत और भारतीयों से केवल दान लेकर भी हर साल एक विश्वविद्याय खड़ा कर सकते हैं। निः शुल्क और समान शिक्षा के लिए। जो आज हमारी सबसे बड़ी जरूरत है। हमारी पीढियां अगर कायदे से शिक्षित हों गई तो बाकी सभी काम वो स्वयं कर लेंगे ।