तिल्ली के बगैर, तिल-तिल मरने में जो मजा है, अभी वो लेना बाकी है
रिजर्व बैंक, देश की तिल्ली है!
तिल्ली, यानी स्प्लीन। एक अंग जो आपके शरीर में होता है, पेट के ऊपर, रिब्स के पास। और यह खून से जुड़े काम करता है।
जीवन की शुरुआत में खून बनाने का काम, स्प्लीन करता है। हड्डियां बनने के बाद यह काम बोन मैरो में होने लगता है। शुरू में पुराने ब्लड को डी-कम्पोज करने तोड़ने का काम भी यही करता है। परंतु बाद में यह काम लीवर को ट्रांसफर कर दिया जाता है। अंततः स्प्लीन एक स्पंज की तरह रह जाता है। खून सोखने वाला, रिलीज करने वाला।
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यानी जो पांच लीटर खून आपके शरीर में है, इसका 15 से 20% स्प्लीन में स्टोर रहता है। यह सरप्लस ब्लड है। जब आप दौड़ते, भागते, बीमार या बुखार में होते हैं, पहाड़ या ऊंचाई पर होते हैं तब शरीर में खून की जरूरत बढ़ जाती है।
तब स्प्लीन सिकुड़ता है। अतिरिक्त रक्त, धमनियों में चला जाता है। सामान्य अवस्था में स्प्लीन इस खून को वापस लेता है। अतिरिक्त उसके पास रहता है, अगली बार की जरूरत के लिए। और यह जरूरत दिन में दस बार आ सकती है।
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रिजर्व बैंक, देश की अर्थव्यवस्था का “स्प्लीन” है। पहले नोट यहीं छपते हैं, यानी दौलत यहीं बनती है। लेकिन इसके बाद यह काम उद्यमी और जनता करने लगती है। जी हां, नोट हम जनता छापती है।
जब आप सौ रुपये में कोई चीज बनाकर 110 रुपये में बेचते हैं, तो 10 रुपये इकोनॉमी में बढ़ जाते हैं। सरकार इससे मैचिंग अतिरिक्त रुपये छाप देती है। इससे ज्यादा के छाप दे तो मुद्रास्फीति होगी, कम छापे तो मुद्रा संकुचन।
नोट छापकर चौराहे पर नहीं बांट दिये जाते, उसका एक सिस्टम है। सादे कागज पर रिजर्व बैंक, धारक को रुपये देने का वचन पत्र करेंसी लिखकर उसे अपने लाइसेंसी बैंक को 4 से 5% ब्याज रेपो रेट पर दे देता है। इस प्रक्रिया में जो कमाई होती है, वह रिजर्व बैंक की होती है। उसका सरप्लस बनता है।
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जब अर्थव्यवस्था बाहरी झंझावात में फंसती है, इस सरप्लस से रिजर्व बैंक डॉलर या अन्य विदेशी मुद्राएं खरीदता है। क्योंकि आपको अपनी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थिर रखना होता है। तो आपके पास जितना ज्यादा सरप्लस है, आपकी इकॉनामी उतनी ज्यादा स्थिर है।
रुपये के पूर्ण परिवर्तनीय होने के बाद यह रोजमर्रा का काम है। ठीक वैसे ही जैसे दौड़ना, भागना, तेज चलना, घबराना इसमें भी धड़कन बढ़ती है रोजमर्रा की बात है। तो स्प्लीन से सरप्लस ब्लड का यूज होना रोजमर्रा की जरूरत है।
अब जरा सोचिए कि स्प्लीन का सारा खून आप निकाल कर पी जायें। पचा लें तो
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अपना दाना-पानी भोजन आप अपनी मूर्खता, आलस, सनक की वजह से कमाना छोड़ दें और अपना सरप्लस ब्लड पीकर और दो दिन काम चला लें लेकिन आप अब चलने-फिरने से भी लाचार हो जाएंगे।
दस कदम में हांफ जाएंगे, बेहोश होकर गिरेंगे। थोड़ी सी घबराहट में दिमाग सुन्न होने लगेगा, क्योंकि अब आपके स्प्लीन के पास ब्रेन को तत्काल भेजने के लिए खून है ही नहीं।
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जिन्हें समझ नहीं, न बायलॉजी न इकॉनमिक्स, वे कह सकते हैं कि शरीर का मालिक अपने शरीर के साथ जो चाहे करे। सरकार रिजर्व बैंक की मालिक है, उसको अधिकार है।
ठीक है भाई, तुम ही मालिक हो। अभी रिजर्व ब्लड खा गए। पीएसयू यानी अपने ही हाथ-पैर काटकर, रोज हाथ-करी, पैर-रोस्ट, ऊंगली-दो प्याजा की दावत उड़ा रहे हैं।
देश हर घंटे अपाहिज से महाअपाहिज बनने की ओर बढ़ रहा है। यह हमारा चयन था, यह हमारी आशा थी। अब्दुल को अपाहिज बनाने चले थे। खुद बन गए हो।