तपोवन विष्णुगाढ परियोजना ने लील ली बेगुनाहों की जिन्दगी
हकीकत, एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाढ परियोजना, 7 फरवरी की आपदा में जिसका बैराज बह गया और डेढ़ सौ से ज्यादा लोग भी इसमें हताहत हुए .. की
सन 2004—05 में जब जन सुनवाई हुई तो हमनें इनसे पूछा था कि क्या आपके पास इस नदी के फ्लो अर्थात बहाव का आंकड़ा है? इन्होंने कहा नहीं।
हमने पूछा कि क्या आपके पास पिछले सौ साल या 50 साल की बारिश का आंकड़ा है? एनटीपीसी ने कहा नहीं। हमनें कहा, तब इस 520 मेगावाट का आधार क्या है? इनके पास कोई जवाब नहीं था।
यह बात इनकी जनसुनवाई की मिनट्स में बाकायदा दर्ज हैं। जो ऑनलाइन उपलब्ध है।
उसके बाद एनटीपीसी ने पानी का बहाव नापने को कुछ आदमी दिहाड़ी पर रखे, जो डंडे से पानी का माप लेते थे। जानें, ये कितना आधुनिक था और कितना वैज्ञानिक। पर कई सालतक इसी विधि से नाप होती रही। इसके गवाह कई स्थानीय लोग हैं।
बाद में प्रतिदिन के बहाव के/जल स्तर के आंकड़े मशीनों से लिये जाने लगे। एक बार सुबह और दूसरी बार शाम को। ये आंकड़ा बाकायदा इकठ्ठा होता और सुना है कि जल आयोग को भी भेजा जाता था।
5 से 6 फरवरी की सुबह और शाम को भी यह आंकड़ा लिया गया। यहां तक कि 7 फरवरी की सुबह में जब 10 बजे बाढ़ आई, उससे एक घण्टे पहले यह आंकड़ा लिया गया होगा। तपोवन बैराज के पास ही यह नाप लिया गया होगा।
ऋषिगंगा में पानी का बहाव कुछ समय से कम आ रहा था। क्योंकि ऊपरी इलाके से पानी कम डिस्चार्ज हो रहा था। क्योंकि वहां झील बन गयी थी। जिससे ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट का पावर जनरेशन भी प्रभावित हो रहा था। ऐसे में नदी के बहाव में कमी की रीडिंग व आंकड़ा तपोवन में एनटीपीसी दर्ज कर रही होगी। जिससे इनको सतर्क होना चाहिए था। और इसका पता ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के मैनेजमेंट से करते हुए सुनिश्चित करना था।
खतरे का संकेत मिलने पर सतर्क होना था। न सिर्फ सतर्क बल्कि इससे बचने के उपाय करने थे। किंतु यहां तो दूर—दूर तक इसके कोई निशान भी नहीं। अलार्म सिस्टम नहीं तो नहीं पर जो पानी का डिस्चार्ज नापते थे उसी पर ध्यान दे देते। अन्यथा इस कवायद का अर्थ क्या था?
यदि यह तथ्य सही हैं तो फिर यह लापरवाहियों का पिटारा खुल रहा है। इतनी बड़ी परियोजना हवा में बन रही थी। लोगों की जिंदगी से खेलते हुए। और अब इस आपराधिक लापरवाही के बाद उसको मैनेज करने के कुत्सित प्रयास भी हो रहे हैं। जब आपका ध्यान लापता लोगों की खोज में होना चाहिए था, उसी पर सारा फोकस होना था तब आपको गांव—गांव मेडिकल कैम्प लगाने की क्यों याद आ रही है।
इस तरह पैबंद लगाने से क्या हो जाएगा। इस तरह की हेडलाइन से क्या हासिल करना है? आजकी प्राथमिकता थी लापता लोगों की खोज। उससे पहले सुरंग में फंसे हुओं को किसी भी तरह जिंदा बचा लेना। पर क्या ये हुआ? आपने किया? नहीं ।
इन सबका जवाब आज नहीं कल देना ही होगा।