कांग्रेस और मुसलमान दोनों मात खा गए
शाहबानो केस में कांग्रेस और मुसलमान दोनों मात खा गए। मुसलमानों को शाहबानों के साथ होना था । आज देश की राजनीति में मुसलमान Irrelevant हो चुका है तो इसकी वजह शाहबानो Case है।
यदि शाहबानो को 300 रुपए प्रति माह का खर्च उसके पति द्वारा दिलवा दिया जाता औऱ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मान रख लिया जाता। तब न काँग्रेस तुष्टिकरण के चार्ज को Nullify करने के लिए राम मंदिर के ताले खुलवाती, ना बाबरी मस्जिद टूटती, ना राम मंदिर मुद्दा होता, ना BJP सत्ता में आती ।
एक महिला के साथ किया गया अन्याय देश मे 15 करोड़ मुसलमानों और 140 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को बहुत भारी पड़ा। दोनों तबाह हो चुके हैं, राजनीतिक रूप से और वापसी की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।
देश के मुसलमानों और उनके तथाकथित नेताओं ने दो अक्षम्य ग़लतियाँ नहीं अपराध किये हैं। पहला देश का विभाजन करवा कर और दूसरा शाहबानो केस के लिए संविधान संशोधन करवा कर। शाहबानों केस में आरिफ़ मुहम्मद खान जैसे इस्लामिक Scholar के बजाय फ़ण्डामेंटलिस्ट मुल्लों की बात सुनी गई।
इसी तरह विभाजन के समय मौलाना आज़ाद और मौलाना हसरत मोहानी के बजाय जिन्ना की बात सुनी गई। वह जिन्ना जिन्होंने कभी नमाज़ नहीं पढ़ी, जो रोज़ शराब पीते थे, जो सुअर का गोश्त खाते थे। क्यों कर उन्हें मुसलमानों ने अपना नेता माना ये बात आज तक नहीं समझ आयी।
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
इमरान बेग, जन विचार संवाद ग्रुप की फेसबुक वॉल से साभार