पंचतंत्र
PanchTantra-टका नहीं तो टकटका भाग-4
एक ने उपदेश भी दे डाला, समझदार लोग जरा-जरा सी बचत के लिए बड़ा नुकसान नहीं उठाते हैं। सयानापन इसी में है कि अधिक को बचाने के लिए छोटा मोटा नुकसान हंसते-हंसते उठा लो।
इस बात का कोई जवाब तो हो नहीं सकता था। दूसरा कौन समझ सकता था कि वहां सवाल हानि-लाभ का है ही नहीं। यह भावना का मामला है,जिसका मोल न तो कोई लगा सकता है न ही किसी ने लगाया है।
एक तरह से साथ के व्यापारी सही भी थे। बैल को बचाने के लिए आदमियों का जान चली जाए तो यह भावुकता महंगी पड़ेगी। जान और माल (Goods) तो वर्धमान का भी खतरे में था। वर्धमान की समझ में उनकी बात आ गई और उसने अपने साथ चल रहे रक्षकों में से दो को संजीवक की रक्षा के लिए छोड़ दिया और सबके साथ आगे बढ़ गया।
इससे आगे, अगले भाग-5 में पढ़ें….
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