पंचतंत्र
PanchTantra-टका नहीं तो टकटका भाग-4
गाड़ी बाहर निकालने के लिए बैलों ने जान लड़ा दी। यहां तक कि जोर लगाने में झटके से गाड़ी की जुआठ टूट गई। संजीवक स्वंय झटका खा कर गिरा तो उसकी एक टांग ही टूट गई। उसने उठने की लाख कोशिश की, उठ नहीं पाया। जहां गिरा था वहीं पड़ा रह गया।
वार्धमान ने एक दिन देखा, दो दिन देखा, तीन दिन देखा, पर संजीवक न उठे न उठने का नाम ले। उसकी समझ में न आए कि वह करे तो क्या करे और रुके तो कितने दिन। घर का इतना पुराना और लाड़ला बैल ठहरा। उसे छोड़ कर आगे भी जाते नहीं बनता था।
अब उसे जत्थे में सम्मिलित दूसरे बनिया भी शोर मचाने लगे। एक तो कछार, दूसरे पास ही जंगल। डाकुओं का डर तो था ही, जंगली जानवरों का भी डर बना हुआ था। वे वर्धमान को कोसने लगे कि भाई, तुम अपनी जान देने पर तो उतारु हो ही, हमारी जान भी लेकर रहोगे।
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