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Gujarat Election में कौन होगा गेमचेन्जर

Gujarat (गुजरात) चुनाव में कौन होगा गेमचेन्जर- क्या (Gujarat) की सत्ता में कोली और कुणबी पाटीदार गेमचेन्जर के रूप में प्रगट होंगे। गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में Game-changer होंगे आदिवासी, मछुआरे व ओबीसीl गुजरात (Gujarat) के विधानसभा चुनाव-2017 में आरक्षण एक अहम मुद्दा रहेगा। पिछड़ा वर्ग आरक्षण व पाटीदार आरक्षण आन्दोलन की गुजरात चुनाव में प्रभावकारी भूमिका में कोली मछुआरा व कुणबी पाटीदार की निर्णायक भूमिका रहेगी।

गुजरात की सत्ता की चाभी कोली व कुणबी जाति के हाथ में रहेगी। गुजरात (Gujarat) के सत्ता सिंघासन पर भाजपा व कांग्रेस में कौन बैठेगा, इसका निर्णय कोली, मछुआरा व कुणबी पाटीदार ही करेंगे। गुजरात (Gujarat) में इस समय जो राजनीतिक स्थिति बनी है, उससे यही संकेत मिल रहा है कि कांग्रेस व भाजपा के परम्परागत वोट बैंक में बदलाव होगा। शंकर सिंह बाघेला को तोड़कर भाजपा खेमे में लाने के पीछे क्षत्रिय/राजपूत वोट बैंक में सेंधमारी करना अमित शाह का मकसद रहा है।
परन्तु शंकर सिंह बाधेला अपना अलग राजनीतिक मंच बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। कांग्रेस के साथ भी शक्ति सिंह गोहिल मजबूत क्षत्रिय नेता हैं। परन्तु बाघेला व गोहिल में कोई क्षत्रिय वोट बैंक को पूरी तरह अपने साथ करने का दावा नहीं कर सकता, कारण की क्षत्रिय व ब्राह्मण पार्टी कम जातिगत उम्मीदवार के आधार पर मतदान करते रहें हैं।  गुजरात (Gujarat) के कई क्षेत्रों में क्षत्रिय/राजपूत ओबीसी में शुमार हैं। कोली समाज जो गुजरात का एक मजबूत आधार वाला समाज हैl
भाजपा के साथ कोली सीएम फेस प्रोजेक्ट करने की घोषणा की शर्त पर उसके साथ जाने का निर्णय ले सकता है। पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय चिन्तक व निषाद मछुआरा समाज के राष्ट्रीय नेता लौटन राम निषाद का कहना है कि भाजपा ब्राह्मण, बनिया, राजपूत की बदलौत किसी भी सूरतेहाल में गुजरात (Gujarat) में कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। अतिपिछड़ा वर्ग की ही बदौलत आज भाजपा इतनी ऊंचाई पर पहुंची है, पर भाजपा की आरक्षण विरोधी नीति से अब पिछड़ों का भाजपा प्रेम ढ़लान पर है।
आरएसएस के आन्तरिक सर्वे में  भाजपा को 57-60 सीटें ही मिलती दिख रही हैं। इस रिपोर्ट से मोदी व शाह की परेशानी बढ़ी है। कांग्रेस हो या भाजपा-सवर्ण जातियों के अलावा कुणबी को ही ज्यादा तवज्जो देती है। जबकि गुजरात में 24.26 प्रतिशत कोली सहित भोई, माछी, खारवा, केवट, कहार, धीवर, माझी, मल्लाह, आदि के साथ 29.84 प्रतिशत आबादी कोली-निषाद मछुआरों की है।
गुजरात (Gujarat) में कुणबी पाटीदार मुख्य रूप से दो खापों-लेऊवा पटेल व कडवा पटेल में विभक्त है। कच्छ व सौराष्ट्र की 58 में से 48 सीटों पर पटेलों का दबदबा है। जिसमें 36 सीटों पर लेऊआ पटेल का वर्चस्व है। वहीं कोली मछुआरों का कच्छ व सौराष्ट्र में पटेलों से अधिक वोट बैंक है। दो दर्जन से अधिक सीटों पर तो इनका वोट बैंक 50 प्रतिशत से अधिक है।
और कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहां 18-24 प्रतिशत कोली-निषाद-मछुआरा न हों। पेारबन्दर में मेर समुदाय का वोट बैंक निर्णायक है। गुजरात में विधानसभा की 182 सीटें हैं जिनका चार क्षेत्रों में उपविभाजन है। विगत विधानसभा चुनाव-2012 मे सौराष्ट्र की 58 सीटों में से भाजपा ने 43 व कांग्रेस ने 14 सीटों पर कब्जा जमाया था और एक सीट अन्य के खाते में गयी थी। दक्षिणी गुजरात मछुआरा व आदिवासी बहुल क्षेत्र है।
मध्य गुजरात (Gujarat) की 57 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा को 30 व कांग्रेस को 24 सीटें मिली थीं। यहां दोनों दलों में बहुत कड़ा संघर्ष देखने को मिला था। दक्षिणी गुजरात की 36 सीटों में से भाजपा को 19, कांग्रेस को 14 व अन्य को 3 सीटें मिली थी। उत्तरी गुजरात से भाजपा को 25 व कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं। लेऊआ पटेल समाज के केसू भाई पटेल भाजपा के विरूद्ध थे। परन्तु उनकी कमी को कोलियों ने पूरा कर दिया।
गुजरात की ओबीसी आबादी में 40 प्रतिशत से अधिक कोली हैं। पिछड़ा वर्ग आयोग के अनुसार इसमें अधिकांश मछली के कार्य से जुड़े हैं। मध्य व उत्तर गुजरात के कोली खेती, किसानी व छोटे मोटे कारेाबारों से जुड़े हैं। गुजरात की 182 में से 58 सीटें पाटीदार के वर्चस्व वाली हैं। और 117 सीटों पर कोली मछुआरों का वर्चस्व है। गुजरात में कोली समुदाय चुआड़िया कोली, तालपड़ा कोली, पाटनवाड़िया कोली, वाल्या कोली, वाडिया कोली, ठाकोर कोली, कोली पटेल खापों में विभक्त है।
इनका तांडेल, खरवा, डोंगर कोली, मकवाना कोली, महादेव कोली, मल्हार काली, टोकरे कोली, सूर्यवंशी कोली, महावर कोली, नाकवा, वैती आदि उपविभाजन है। गुजरात में यादव अहिर, नन्दवंशी, परथारिया, सोशथिया, पंचैली, मस्चोड्या उप वर्ग में विभक्त है। पर यहा ये प्रभावशाली स्थिति में नहीं हैं।  गुजरात की राजनीति में 14.53 प्रतिशत आबादी वाले कुणबी पाटीदार को कांग्रेस हो या भाजपा दोनों दलों ने प्रमुखता दिया।
पाटीदार समाज की 14.53 प्रतिशत आबादी में लेऊआ पटेल-8.11 प्रतिशत व कडवा पटेल-6.42 प्रतिशत हैं। विजय रूपाणी मंत्री मण्डल में उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल के अलावा एक कैबिनेट व पांच राज्यमंत्री पटेल समाज के हैं। वहीं 24 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले कोली मछुआरा समाज के मात्र तीन राज्य मंत्री हैं जिससे कोली मछुआरों में काफी असंतोष है।
भाजपा ने कोली समाज को भ्रमित करने के लिए अनुसूचित जाति कोरी बिरादरी के रामनाथ कोविन्द को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर कोली के रूप में प्रचारित कराया। राष्ट्रपति बनने के बाद रामनाथ कोविन्द कोली महिलाओं से रक्षा बंधन पर्व पर राखी भी बंधवाये। मछुआरा समाज के राष्ट्रीय नेता व सामाजिक चिन्तक लौटन राम निषाद इसे भाजपा की कपट पूर्ण छल-फरेब की राजनीति बताया।
गुजरात में अबकी बार कोली को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ रही है।  गुजरात (Gujarat) विधानसभा चुनाव आगामी दिसम्बर महीने में प्रस्तावित है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस समय गुजरात भाजपा में कोई प्रभावी चेहरा नहीं दिखायी दे रहा है। मुद्दों के साथ—साथ प्रभावी व्यक्ति ही जीत का आधार होता है परन्तु भाजपा में इसकी कमी दिखायी दे रही है।
पाटीदार आरक्षण आन्दोलन व आनन्दी बेन पटेल केा मुख्यमंत्री पद से हटा कर विजय रूपाणी को सीएम बनाने से कुणबी पाटीदार समाज काफी नाराज हैै। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत हुई हैं। अमित शाह व नरेन्द्र मोदी गुजरात चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर हर महीने दौरा कर रहे हैं। परन्तु गुजरात चुनाव में इनका सीधा जुड़ाव न होने से भाजपा कमजोर स्थिति में हो गयी है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जीतू बाघानी व विजय रूपाणी प्रभावशाली चेहरे नहीं हैं। विगत दिनों बुलेट ट्रेन के बहाने आबे के साथ प्रधानमंत्री गुजरात जाकर चुनावी माहौल बनाने का ही काम किये।  गुजरात (Gujarat) चुनाव में 24 प्रतिशत अधिक संख्या वाले कोली मछुआरे व 17 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले आदिवासी गेम चेन्जर की भूमिका में रहेंगे। ऊना में दलितों के उत्पीड़न के कारण दलित वर्ग भाजपा से कट चुका है।
दूसरी तरफ आदिवासी समुदाय अपनी उपेक्षा के कारण भाजपा से नाराज चल रहा है। भाजपा में कोई प्रभावशाली चेहरा नहीं दिखायी दे रहा है, मुद्दों का आधार भी हिला हुआ है। अमित शाह व मोदी के केन्द्रीय राजनीति में जाने के बाद गुजरात भाजपा में केाई मजबूत चेहरा नहीं है। ऊना में दलितों की पिटाई के बाद दलित वर्ग भाजपा से कन्नी काटे हुए है। पाटीदार आरक्षण आन्दोलन व आनन्दी बेन को पद से हटाये जाने के बाद कुणबी समाज खासा नाराज है।
वहीं सबसे अधिक आबादी वाला कोली समाज सम्मान जनक राजनैतिक हिस्से दारी न मिलने से खफा है। गुजरात (Gujarat) में कोली के बाद 17 प्रतिशत आबादी वाला आदिवासी समाज भी प्रदेश में राजनीतिक उपेक्षा के कारण नाराज चल रहा है। भिलीस्तान आंदोलन खड़ा होने से आदिवासी समुदाय अनियंत्रित होता दिख रहा है। चुनाव में भाजपा की कमजोर स्थित को देखते हुए ही शाह व मोदी गुजरात का लगातार दौरा कर रहे हैं।
समय से पूर्व सरदार सरोवर बांध का उदघाटन किये जाने के पीछे वोट बैंक की ही राजनीति है। पिछले दिनों राहुल गांधी भी गुजरात (Gujarat) दौरे पर गये और पाटीदारों व आदिवासियों से सम्पर्क स्थापित किया।  17 अप्रैल 2017 के आरक्षण के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों में भाजपा के प्रति खासी नाराजगी उत्पन्न हुई है।
मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में आदिवासी व निषाद मछुआरे गेम चेन्जर की स्थिति में हैं। छत्तीसगढ़ में 29 प्रतिशत व मध्यप्रदेश में 22 प्रतिशत से अधिक गोड़, कंवर, मांझी आदिवासी जातियां हैं। वहीं निषाद मछुआरा समाज की आबादी दोनों राज्यों में 8.5 प्रतिशत से 9 प्रतिशत के मध्य है। 2003 में उमा भारती ने मांझी, मझवार अनुसूचित जनजाति की भांति निषाद मल्लाह, केवट धीमर, धीवर, भोई, कहार आदि को अनुसूचित जनजाति का आरक्षण देने का प्रस्ताव भेजा था। इसके बाद 7-8 बार राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव व अनुस्मारक भेजे जाने के बाद केन्द्र सरकार द्वारा कोई निर्णय न लिये जाने व थावर चन्द गहलौत के नकारात्मक रूख से मांझी निषाद समाज छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश में भाजपा से नाराज हुआ है।
ओबीसी को जनसंख्यानुपाती आरक्षण की मांग को लेकर मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग भी काफी मुखर है। मोस्ट बैकवर्ड क्लासेज एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष व अखिल भारतीय ओबीसी महासभा के संयोजक डा0 राम सुमिरन विश्वकर्मा का कहना है कि भाजपा सच्चाईयों को झुठलाने के लिए ओबीसी आयोग को भंग कर नया राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने, ओबीसी का उपवर्गीकरण करने व आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का राजनीतिक नाटक कर रही है। लेकिन भाजपा को उसके मकसद में कामयाब होने नहीं दिया जायेगा।
मध्यप्रदेश चुनाव परिणाम के सन्दर्भ में आरएसएस की आन्तरिक रिपोर्ट भाजपा के प्रतिकूल बताई जा रही है। संघ की रिपोर्ट के अनुसार शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में अनुकूल परिणाम की प्राप्ति सम्भव नहीं है। संघ के सर्वे में भाजपा को 70-90 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है। 01-04 सितम्बर तक वृन्दावन में मोहनभागवत की उपस्थिति में संघ के आनुषांगिक संगठनों की बैठक में भी गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में भाजपा की कमजोर स्थिति का उल्लेख किया गया है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह 18 से 20 अगस्त तक मध्यप्रदेश प्रवास पर थे, उन्हें भी आरएसएस की टीम ने भाजपा की वर्तमान स्थितियों से अवगत कराया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नन्द कुमार सिंह चौहान ने अपनी रिपोर्ट शाह को दिया तो उन्होंने मंच पर ही डपट दिया। गुजरात, मध्य प्रदेश को लेकर अमित शाह, नरेन्द्र मोदी के साथ-साथ आरएसएस प्रमुख व राष्ट्रीय प्रचारक काफी चिन्तित हैं। कुल मिलाकर इन राज्यों में भाजपा के लिए चुनावी माहौल अनुकूल नहीं है।
बाल गोविन्द शुक्ला/दिनेश भाई नान्हू भाई पटनी
सामाजिक/राजनीतिक चिंतक

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