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Cooperative किसानोसमृ्द्धि का क्षेत्र खोजे:मोदी

Cooperative को मधुमक्खी पालन, समुद्री खरपतवार के उत्पादन जैसे नये क्षेत्रों में प्रवेश करना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शहरों के साथ गांव के विकास की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहाl

कि साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी (Farm Income) करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिये सुझाव दियाl

मोदी ने कहा कि हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि  किसान थोकमूल्य के आधार पर वस्तु खरीदे और खुदरा मूल्य के आधार पर अपने उत्पाद बेचे?

Cooperative आंदोलन के प्रणेताओं में शामिल लक्ष्मण राव ईनामदार के जन्मशती समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि ग्रामीण जीवन में आधुनिक संदर्भ में कृषि क्षेत्र के विकास की दिशा हम Cooperative के माध्यम से तय कर सकते हैं।

साल 2022 में किसानों की आय दोगुनी कैसे हो? ऐसी कौन कौन सी चीजों को जोड़ें और किन गलत आदतों को छोड़ें ताकि कृषि को आधुनिक संदर्भ में आगे बढ़ाया जा सके… यह महत्वपूर्ण विषय है।

उन्होंने कहा कि शहर का विकास हो, लेकिन गांव पीछे नहीं छूटे… यह ध्यान रखने की जरूरत है।

इसके लिये सम्यक विकास की आवश्यकता होती है, समान अवसर की आवश्यकता होती है।

‘सम्यक विकास और समान अवसर के मूल में Cooperative है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में किसानों की कई समस्याएं हैं लेकिन एक बात देखें कि किसान जो खरीदता है, वह खुदरा मूल्य (रिटेल) के आधार पर और अपने उत्पाद थोक मूल्य के आधार पर।

‘यह उल्टा हो सकता है क्या? किसान खरीदे थोक मूल्य के आधार पर और अपने उत्पाद को खुदरा मूल्य के आधार पर बेचे।

हमें इस पर विचार करना चाहिए।

ऐसा होगा तब उसे (किसान को) कोई लूट नहीं पायेगा, कोई बिचौलिया उसे काट नहीं पायेगा।’’

मोदी ने इस संदर्भ में डेयरी उद्योग का उदाहरण दिया और कहा कि डेयरी उद्योग की विशेषता यह है कि यहां किसान थोक मूल्य के आधार पर खरीदता है और बेचता भी थोक मूल्य के आधार पर है।

इसमें Cooperative का मंत्र है और किसानों को आय के साथ सुविधाएं भी मिलती हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘डेयरी उद्योग Cooperative के आधार पर आगे बढ़ा। क्या हम दूसरे क्षेत्र में ऐसी सहकारिता वाली व्यवस्था खड़ी नहीं कर सकते हैं।

अभी अनेक ऐसे विषय और क्षेत्र हैं जहां सहकारिता ने कदम नहीं रखा है।

अनगिनत ऐसे क्षेत्र हैं जहां सहकारिता की हवा नहीं पहुंची है।

ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां एक पीढ़ी को खपना पड़ेगा तब हम उसे खड़ा कर सकते हैं।

उन्होंने इस संदर्भ में यूरिया को नीम लेपित करने के लिये नीम की फली एकत्र करने और उसे फैक्टरी तक पहुंचाने के लिये सहकारिता को पहल करने, शहद पैदा करने के लिये मधुक्रांति और मुछआरों द्वारा समुद्र के किनारे समुद्री खरपतवार के उत्पादन करने में सहकारिता पहल का सुझाव दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि Cooperative हमारे देश के स्वभाव में है।

यह उधार में ली गई व्यवस्था नहीं है।

यह देश के चिंतन, स्वभाव और व्यवहार के अनुरूप व्यवस्था है।

Cooperatives Should Explore New Areas to Double Farm Income, Says PM Narendra Modi
Cooperatives Should Explore New Areas to Double Farm Income, Says PM Narendra Modi

ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिये सहकारिता बहुत बड़ा योगदान कर सकती है।

सहकारिता आंदोलन में हाल के समय में उत्पन्न खामियों की ओर इशारा करते हुए मोदी ने कहा कि कालक्रम में व्यवस्थाओं में दोष आते ही हैं।

कुछ व्यवस्थाएं कालवाह्य हो जाती हैं।

सहकारिता क्षेत्र से जुड़े हर किसी को आत्मचिंतन करते रहना चाहिए।

कहीं ऐसा तो नहीं समझ रहे हैं कि सहकारिता एक ढांचा हैं, या कानूनी व्यवस्था है।

अगर हम यह समझें कि यह केवल संविधान और नियम के दायरे और चौखट में बांधी हुई व्यवस्था है, तब तो गलत हो जायेगा।

उन्होंने कहा कि इतना बड़ा देश है तब नियमों, व्यवस्थाओं की जरूरत होगी।

क्या करें और क्या नहीं करें.. यह भी जरूरी है।

लेकिन सहकारिता केवल इससे नहीं चलती है।

सहकारिता केवल एक ‘‘व्यवस्था’’ नहीं बल्कि एक ‘‘भावना’’ है।

इसके लिये संस्कार की जरूरत होती है।

मोदी ने कहा कि इसलिये वकील साहब (लक्ष्मण राव इनामदार) कहते थे कि बिना संस्कार, नहीं सहकार।

आज नजर आता है कि यह भावना कहीं न कहीं ढांचे में खो गयी है।

इसलिये सहकारिता की भावना को ताकत देने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि सहकारिता आंदोलन का आधार ग्रामीण क्षेत्र रहा है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है।

इसके साथ ही शहरी क्षेत्र में सहकारिता खड़ी हुई और शहरी बैंकिंग सहकारिता खड़ी हुई।

इसके बाद इसके रंग रूप बदलने लगे, ताने बाने बिखरने लगे, शंका कुशंकाओं का दायरा बढ़ता गया।

लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्र में सहकारिता का पवित्र एहसास होता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसान को लगता है कि उसके लिये सहकारिता सही रास्ता हैl

और सहकारिता आंदोलन के लिये समय देने वालों को लगता है कि गांव, गरीब और किसान के लिये कुछ किया है।

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