भष्टाचार कहीं अधिक बढ़ गया है। गरीब और मध्यम वर्ग मरने की कगार पर है, जबकि उच्च और अति उच्च वर्ग मलाई के ढ़ेर पर बैठा है। सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न होता जा रहा है।
कोई दो राय नहीं कि आने वाला कल बहुत भारी हो और यहॉं गरीब और अति गरीब के लिए जीने के अवसर ही ना बचें। जिसे देखिए वो ही लूटने में लगा है। चाहे बिजनिसमैन हों अथवा बैंकें या कि सरकारी प्रतिष्ठान।
ऐसे माहौल में अन्ना की आवाज कितने कानों तक पहुंच पायेगी, कहना मुश्किल है। लोग उनके आन्दोलन में आयेंगेए जैसे जयप्रकाश नारायण जी के आन्दोलन में आये, नेता बने और जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो जयप्रकाश जीे तो सत्ता के भागीदार नहीं हुए, लेकिन उनके आन्दोलन से जुड़े नेता प्रधानमंत्री तक बन गये और क्या दिया इस देश को वो आपके समाने है।
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