पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रैली में भाजपा पर निशाना ही नहीं साधा, उनके संबोधन में फिर से सत्ता पर नजर भी साफ नजर आई। हस्तिनापुर के टोटके पर भी उनकी निगाह है, जिसमें कहा जाता है कि जिस पार्टी का यहां से विधायक बनता है, प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है।
अपने 35 मिनट के संबोधन में उन्होंने हस्तिनापुर के अतीत और वर्तमान पर खुलकर बात की। दिल की बातें की और पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ रही कीमतों और महंगाई पर केंद्र सरकार से सवाल पूछे।
क्षेत्रीय लोगों की किसान आंदोलन में बड़ी भूमिका के मद्देनजर उनका दर्द विस्तार से बयां किया। कहा कि सरकार चार साल का जश्न मना रही है, तो बताए किसान क्यों परेशान है।
उन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले किसानों को बधाई दी और कहा कि मैं जानता हूं किसानों को जब तक उनका हक नहीं मिलेगा, आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे। बोले-किसानों को धान का एमएसपी नहीं मिल पाया है। आज भी पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा किसानों को गन्ना भुगतान का इंतजार है। सपा सरकार ने जितनी गन्ने की कीमत बढ़ाई, भाजपा सरकार चार साल में उतनी भी नहीं बढ़ा पाई।
जीएसटी से कारोबारियों के नुकसान और नौजवानों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी की बात उठाई तो गुर्जर-दलितों का वोट बैंक साधने की भी कोशिश की। दरअसल, पूरा मंच क्षेत्रीय गुर्जर समाज और अनुसूचित जातियों को इकट्ठा करने के लिए सजाया गया था। हस्तिनापुर सीट आरक्षित है। बावजूद इसके यहां गुर्जर समाज के मतदाता प्रभावी हैं और हार-जीत का सबसे बड़ा कारण बनते हैं।
हस्तिनापुर के समीकरणों का असर सरधना में भी पड़ना तय है। फिलहाल, दोनों सीटें भाजपा के पास हैं। अखिलेश ने एक कार्यक्रम से दोनों क्षेत्रों में अपनी बात पहुंचा दी है। कुछ दिन पहले किसानों को साधने के लिए यहां भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल ने पंचायत चुनाव के मद्देनजर दौरे किए थे।