भारत के सबसे बड़े बैंकों में से एक पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने इस मामले में संलिप्त लोगों के नामों का खुलासा भी नहीं किया है। जबकि ऐसा करके PNB भी अपराध कर रही है। आखिरकार बैंकों में जमा धन डिपाजिटर्स का ही होता है, जिसे बैंकें अपने फायदे के लिए दूसरे खाताधारकों को लोन के रूप में देती हैं और बैंकिंग करती हैं। लेकिन इसकी आड़ में बैंके ऐसे कर्ज दे देती हैं, जो आगे चलकर एनपीए घोषित कर दिये जाते हैं। ऐसे कर्जों में बैंकों की जबरदस्त संलिप्तता होती है।
प्राय: देखा गया है कि ऐसे कर्जों में भारत सरकार की भी भूमिका होती है, तभी तो भारी एनपीए के बोझ तले दबे बैंकों को उबारने के नाम पर भारत सरकार उन्हें इक्विटी फण्डिंग करती है, जो लाखों करोड़ की होती है। अभी-अभी इसी सरकार ने लाखों करोड़ की फण्डिंग ऐसी कईएक बैंकों को की है। वैसे तो यह मनी साइफन हुआ, लेकिन उसमें नहीं गिना जाता है।
इसलिए डिपाजिटर्स का धन किस गलत व्यक्ति अथवा कम्पनियों को दिया गया इसकी जानकारी आम खाताधारकों को मिलना आवश्यक है। बैंकों में जमाधन बैंक स्टाफ अथवा एमडी या चेयरमैन का नहीं होता है कि जिसे चाहे दे दें अथवा लुटा दें। ऐसा होने लगा तो फिर बैंक पर कौन विश्वास करेगा? बैंकों का आधार विश्वास ही हैै। अन्यथा तो बैंक और लुटेरों में क्या फर्क रह जायेगा?
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