एनालिसिस
साहूकारों और बैंकों की दुरभिसन्धि तो नहीं
12 प्रतिशत मामले ऐसे भी देखने को मिले कि उन्होंने अपने सामाजिक दायित्वों की पूर्ति यथा शादी-विवाह, अंतिम संस्कार एवं रस्म के निर्वहन के लिए साहूकारों से कर्ज लेना पड़ा है। 10 प्रतिशत लोगों ने मकान एवं जमीन के लिए कर्ज लिया तो 10 प्रतिशत ने व्यावसायिक जरूरतों की पूर्ति के लिए कर्ज लिया।
समाज के निचले तबके को कर्ज लेने की जरूरत तो हमेशा पड़ती ही रहती है। जैसे कि बड़े लोगों एव उद्योगपतियों को पड़ती रहती है। फर्क सिर्फ इतना है कि निचला तबका जीने के लिए कर्ज के जाल में फंसता है। जबकि बड़ा तबका एवं उद्योगपति कर्ज से घी पीने और लंदन में बसने के लिए लेता है। जनता को लाभ पहुचाने का मायाजाल दिखाकर लिए गये कर्ज में से 50 प्रतिशत रकम की फिक्स डिपाजिट अपने परिवारीजनों के नाम पहले ही बनवा लेता है।
आजतक यह देखने को नहीं मिला है कि निम्न आय वाले ने स्टार होटल में खाना खाने, शापिंग-मॉल में शापिंग करने या विलासिता की चीजें खरीदने के लिए कर्ज लिया हो। अपवाद स्वरूप एक प्रतिशत मामले में दो-पहिया वाहन खरीदने के लिए कर्ज जरूर लिया गया हो सकता है।
देश के इन निम्न आयवर्ग वालों में 64 प्रतिशत लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। जबकि 21 प्रतिशत लोग खेती-बाड़ी, परम्परागत शिल्पकारी आदि में हैं। 9 प्रतिशत छोटे दुकानदार तथा मात्र 4 प्रतिशत वेतनभोगी मजदूर हैं। ये भी किसी संगठित क्षेत्र में नहीं हैं। बल्कि दुकानदारों, बड़े किसानों, छोटे-मोटे व्यावसायियों के यहां नौकरी करते हैं।……..जारी
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