अदालत ने आरोपी मो0 मोबीन को न पहचानने पर शाखा प्रबंधक के लिए कहा कि खाताधारकों की संख्या कम होते हुए भी शाखा प्रबंधक अभियुक्त को कैसे नहीं पहचान सके। जबकि कर्मचारियों को सभी खाता धारकों को पहचानना चाहिए था।
आज से 35 साल पहले इतने खाताधारक भी नहीं होते थे कि उन्हें बैंक कर्मचारियों द्वारा पहचानने में दिक्कत हो।
अदालत के समक्ष अभियोजन अधिकारी अवधेश सिंह का तर्क था कि वादी राम कुमार झींगरन ने मलिहाबाद थाने पर रिपोर्ट दर्ज कराकर कहा था कि उसका बैंक में खाता है। वर्ष 1983 की 29 सितंबर को उसने नौ सौ रुपये जमा किए थे।
बाद में खाते से ढाई हजार रुपये निकले गए जबकि रकम उसने नहीं निकाली थी। बैंक ने जब प्रकरण की जांच कराई तब पता चला कि अन्य खातेदार मो0 मोबीन ने फर्जी हस्ताक्षर बनाकर रुपये निकाले हैं।
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