न्यायिक मजिस्ट्रेट कस्टम ने तीन हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। बैंक के शाखा प्रबंधक और लिपिक को भी दोषी माना।
बावजूद इस फैसले के इस पर यह तो कहना ही पड़ेगा कि हिन्दुस्तान में Judgement होने में 35 वर्ष लगने के बाद भी इसी से खुश हो जाता है कि चलो न्याय तो मिला? जबकि ये न्याय तो कतई नहीं कहा जा सकता।
पता नहीं वो क्लर्क सेवा में भी है कि नहीं? अथवा जिसके रूपये निकाले गये, वो भी है कि नहीं?
35 साल बहुत लम्बा सफर होता है, जिन्दगी का। क्योंकि इतने वर्ष की सेवा पूर्ण कर लेना भी बड़ी बात है।
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