चलो रे डोली उठाओ कहार…दशकों बाद पालकी में सवार होकर विदा हुई दुल्हन, टिकी रह गई लोगों की निगाहें
“चलो रे डोली उठाओ कहार” वक्त के साथ डोली का चलन खतम हुआ तो दिल को छू लेने वाला यह मीठा साथ गीत भी डीजे के शोर में खो गया। लेकिन सोमवार को शदियों पुरानी परम्परा को एक फिर से लोगों ने जीवंत होते देखा। लग्जरी गाड़ियों को छोड़ पालकी में दूल्हा-दुल्हन का जोड़ा सवार होकर निकला तो देखने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा।
कहारों के कंधे पर इतराती डोली में बैठे नव विवाहित जोड़े को देखने के लिए पूरे कस्बे के लोग जुट गए। यह नजारा सोमवार को रायबरेली के परशदेपुर कस्बे का था। यहां एक परिवार ने अपनी बेटी की विदाई के लिए पालकी की व्यवस्था की थी। परिवार के मुखिया ने बताया कि वो अपनी बेटी के ब्याह को यादगार बनाने चाहते थे इसलिए डोली और कहार के साथ बिटिया को विदा करने का इंतजाम किया था।
रायबरेली के परशदेपुर कस्बा निवासी दयाशंकर कौशल की बेटी आकांक्षा का विवाह वहीं के रहने वाले गुलाब चंद्र वैश्य के बेटे अमन से हुआ। रविवार को अमन की बारात आई थी। अमन और आकांक्षा अपनी शादी को यादगार बनाने के लिए कुछ अलग करना चाहते थे। शादी की बाकी तैयारियों के साथ काफी समय तक दोनों परिवारों में इसपर विचार-विमर्श हुआ।
विलुप्त होती परम्परा को जीवंत करना भी था मकसद
गुलाब चंद्र ने बताया कि आधुनिकता के युग में जब युवा हेलीकॉप्टर से बारात जाने का सपना देखते हैं ऐसे में उनके बेटे और बहू का विचार दोनों परिवार के दिल को छू गया। दोनों का कहना था कि हमारी पुरानी परम्पराएं खोती जा रही हैं इसीलिए जीवन में दिक्कतें बढ़ रही हैं। दोनों अपने नए जीवन की शुरूआत अपनी संस्कृति और परम्पराओं के साथ करना चाहते थे।