साइबर संवाद

जब एक वोट से गिर गई बाजपेई की सरकार

वो पीछे मुड़ी और ऐसे गरजी कि अटल बिहारी की सरकार गिर गई……

 

16 अप्रैल 1999…! सुब्रमण्यम स्वामी की राजनैतिक कलाबाजी से जयललिता की एआईएडीएमके ने अटल सरकार से समर्थन वापस ले लिया, तत्कालीन राष्ट्रपति के0आर0 नारायण ने सदन में विश्वास प्रस्ताव लाने का आदेश दिया।

तेरह महीने की सरकार ख़तरे में आ गई, प्रधानमंंत्री की कुर्सी दाव पर थी।
तभी संसद भवन की गैलरी में अटल बिहारी वाजपेयी पत्रकारों से मुंह छुपाकर अपनी कार की ओर बढ़ रहे थे, पीछे से आवाज़ आई आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं अटल जी की मुस्कान लौटी, वो कार में बैठे और चले गए।

ये एक आश्वासन था….. क्योंकि उत्तरप्रदेश में दो बार की मुख्यमंत्री और पांच सांसदों की मुखिया बहन मायावती को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल रहा था। ऑफर भाजपा संसदीय कार्य मंत्री कुमार मंगलम लेकर आए थे।

वो तैयार थीं, मतदान में भाग नहीं लेने का संकेत दे दिया गया। अटल जी निश्चिंत हो गए। लेकिन एक गणित और था जिससे मायावती मुख्यमंत्री बन सकती थीं, बग़ैर समर्थन से फूल मैजोरिटी में सरकार बना सकती थीं और वो था मुसलमानों का वोट बैंक, सबसे मजबूत वोट बैंक।

विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग का समय हुआ, बीच सदन में मायावती पीछे मुड़ी, अपने दोनों सांसद आरिफ़ मोहम्मद ख़ां और अकबर अहमद डंपी की तरफ़ देख कर चिल्लाई, लाल बटन दबाओ और पूरे सदन में सन्नाटा छा गया।

बहनजी के फैसले से सरकारी खेमा दहक उठा था, मतगणना के बाद फ़्लैश मशीन पर अटल सरकार एक वोट से गिर चुकी थी। कई पत्रकारों ने मायावती के इस फैसले को बेवकूफी और राजनैतिक आत्महत्या बताया…

लेकिन इतिहास गवाह है, ये उत्तर प्रदेश की सियासत का सबसे मजबूत फैसला था। ये बहन मायावती के सियासी शक्ति की पहली झलकी थी।

मायावती चार बार मुख्यमंत्री रहीं। 95, 97 और 2002 में भाजपा और अन्य छोटी पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाने का मौका मिला। लेकिन 2007 विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उनके दृढ़ निश्चय, अटूट साहस और मजबूत हौसले पर हस्ताक्षर किया, ये चुनाव अपने आप में एक इतिहास था।

बहनजी 206 सीटों के साथ सूबे की मजबूत मुखिया बन चुकी थीं। अब सारे परम्परागत नियम टूट रहे थे। सावित्री बा फूले, कस्तूरबा और इन्दिरा के बाद ये पहली ऐसी महिला थी जिन्होंने रूढ़िवादी ताकतों के सीने पर चढ़कर परम्परागत समाज को धक्का दिया था।

मायावती आजाद भारत में मजलूम दलितों की प्रथम महिला प्रतिनिधि बनीं, दलितों के बीच से निकली असली प्रतिनिधि। हमेशा सूट और जूतियां पहनतीं, लेकिन उनके सियासी मंच पर मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबली भी जूतियां खोलकर चढ़ते थे।

अपने राज़ में लॉ एंड ऑर्डर हमेशा मजबूत रखा, लेकिन करप्शन भी खूब किया। करप्शन किया क्योंकि कोई कॉरपोरेट एक दलित महिला को फंड नहीं दे रहा था।

ख़ैर, उत्तरप्रदेश के जातिगत समीकरण को तोड़कर एक पटल पर लाने वाली महिला के पास आज फिर एक ऑफर है। उनके लिए उपराष्ट्रपति का पद और भतीजे के लिए उपमुख्यमंत्री का, ऑफर फिर भाजपा ने दिया है।

Priyanshu
Priyanshu

प्रियांशु, जन विचार संवाद ग्रुप की वॉल से साभार

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