मुझे लगता है कि भारत मे पत्रकारिता मर चुकी है। एक खबर का जो हश्र देखा है, उसे देखकर बिल्कुल यही महसूस हुआ।
कल मुंबई में एक होटल से वर्तमान लोकसभा के एक सांसद की लाश बरामद हुई है और वो भी संदिग्ध परिस्थितियों में ……. वो भी कोई साधारण सांसद नही बल्कि वह सांसद 7 बार लोकसभा में चुनकर आया है।
हम बात कर रहे हैं, केंद्र शासित प्रदेश दादर नगर हवेली से चुनकर आए निर्दलीय सांसद मोहन डेलकर की…..पुलिस प्रथम दृष्टया इसे आत्महत्या मान रही है।
अब यह एक बड़ी घटना है, लेकिन आप मीडिया में इस घटना की रिपोर्टिंग देखेंगे तो लगेगा कि यह बड़ी साधारण सी घटना है………….आप ही बताइए कि पिछले 70 सालों में आखिर अब तक ऐसी कितनी घटनाएं होगी जिसमें निवर्तमान सांसद की सन्देहास्पद परिस्थितियों में लाश बरामद हो और उस स्टोरी पर कोई खोजबीन तक न हो !….
मैंने कल रात 12 बजे तक सेकड़ों न्यूज़ वेबसाइट खँगाल लिए लेकिन सब में वही मैटर मिला जो एजेंसी ने दिया था…. किसी भी पत्रकार ने यह तलाश करने तक करने की कोशिश नही की कि आखिरकार उस सांसद ने तथाकथित रूप से आत्महत्या क्यों की होगी?
इसके बदले फ़िल्म इंडस्ट्री का कोई साधारण सा अभिनेता यदि आत्महत्या कर ले तो आप मीडिया के पत्रकारों की भूमिका को देखिए पूरा नेशन वान्ट्स टू नो हो जाता है। कि उक्त अभिनेता ने आत्महत्या क्यों की…….लेकिन एक सांसद पँखे से लटक गया/ या लटका दिया पर कोई नही पूछ रहा…..
जब सांसद मोहन डेलकर से संबंधित खबरों को मैंने गहराई में जाकर खंगालना शुरू किया तो एक वीडियो हाथ लगा। यह वीडियो कुछ ही महीने पुराना है। यह वीडियो लोकसभा टीवी का था। इस वीडियो में सदन में मौजूद स्व0 मोहन डेलकर आसन्दी पर बैठे ओम बिरला को संबोधित करके कह रहे हैं कि सर मेरी बात सुन लीजिए। इस सम्बोधन में डेलकर अपने खिलाफ स्थानीय प्रशासन के द्वारा किये जा रहे षड़यंत्र की जानकारी दे रहे हैं।
इस वीडियो से ही हंगामा मच जाना चाहिए था, लेकिन कुछ नही हुआ, बात आयी गयी कर दी गई…..
लोकसभा के इस संबोधन के कुछ समय पहले सिलवासा में उनका एक और वीडियो वायरल हुआ था जिसमें उन्होंने यह ऐलान किया था कि मैं अगले लोकसभा सत्र में इस्तीफा दे दूंगा और अपने इस्तीफे के लिए जिम्मेदार सभी लोगों के नामों का खुलासा करूंगा। “उन्होंने कहा, “मैं लोकसभा में बताऊंगा कि मुझे इस्तीफा क्यों देना पड़ा। “आदिवासी क्षेत्रों में विकास के लिए दिल्ली स्तर पर प्रयास किए गए हैं लेकिन स्थानीय निकायों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सिलवासा में, विकास के नाम पर लोगों की दुकानों और घरों को ध्वस्त किया जा रहा है। और सरकारी शिक्षकों और अन्य नौकरियों के लिए परेशान किया जा रहा है।
इस वीडियो में मोहन डेलकर ने गंभीर आरोप लगाया कि देश अराजकता की स्थिति में है और एक तानाशाही राजशाही की तरह शासन चल रहा है, उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्र का विकास एक ठहराव पर आ गया था, क्योंकि स्थानीय स्तर पर प्रशासन ने उनके प्रयासों या विकास कार्यों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।
उन्होंने इस वीडियो में यह भी कहा था कि मेरे पास स्थानीय अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी सबूत हैं,”
यानी आप देखिए कि, एक निर्वाचित सांसद खुलेआम सदन में स्थानीय प्रशासन के रवैये को लेकर तानाशाही का आरोप लगा रहा है …..स्थानीय अधिकारियों की मनमानी की बात कर रहा है और कुछ दिन बाद उसकी लाश मुंबई के एक होटल में पंखे से लटकती पाई जाती है। लेकिन कोई इस बात पर चर्चा तक नही कर रहा है ……तो यह किसका दोष है ……यह दोष सीधा भारत की पत्रकारिता का ही है, कि वह सही संदर्भों के साथ खबर पेश नही करती है……..
Girish Malviya
जगदीश्वर चतुर्वेदी की फेसबुक वॉल से साभार