साइबर संवाद

निजीकरणः बर्बादी की ओर बढ़ता एक कदम

पहले अलास्का रूस का भाग हुआ करता था। रूस के राजा अलेक्ज़ेडर द्वितीय को लगा कि अलास्का एक वीरान क्षेत्र है, जहां बर्फ और बर्फीले जानवरों के अलावा कुछ नहीं मिलता। रूस के राजा को अलास्का की सुरक्षा भी महंगा काम लगता था।

अतः अलास्का को बेकार की जमीन मान कर 1867 में रूस ने अलास्का मात्र 7.2 मिलियन डॉलर्स में अमेरिका को बेच दिया जो आज के हिसाब से लगभग 52 करोड़ रूपये बैठता है। जहां रूस ने अलास्का को बेकार मान कर अमेरिका को बेचा था वहीं उसे खरीद कर अमेरिका की लॉटरी ही लग गयी।

US $ 7.2 million for Alaska
US $ 7.2 million for Alaska

1896 में अलास्का में भारी मात्रा में सोना मिला बाद में अलास्का में पेट्रोलियम और गैस भी भरपूर मात्रा में मिले। विशेषज्ञों के अनुसार अलास्का की धरती में आज भी लगभग 15 लाख करोड़ रूपये का तेल और गैस मौजूद है। रूस आज भी अपनी इस गलती पर पछताता है।

भारत भी वही गलती करने जा रहा है। भारत के PSU सोने की खान हैं। इन के पास जमीन है, मशीन हैं, बढ़िया मानव संसाधन है, जनता का विश्वास है। सरकार इन को औने-पौने दामों पर पूंजीपतियों को बेचने जा रही है। ताकि एक साल का वित्तीय घाटा पूरा किया जा सके।

अगर भारत को एक सक्षम, समर्थ और विकसित राष्ट्र बनाना है तो हमें हमारे सरकारी संस्थान सुदृढ़ करने होंगे। निजीकरण से सिर्फ चंद पूंजीपतियों का ही भला होगा देश का नही। आइए हम सब मिलकर निजीकरण का विरोध करें और देश को बर्बाद होने से बचाए।

 

Devendra Bholay
Devendra Bholay
देवेन्द्र भोले, जन विचार संवाद की फेसबुक वॉल से साभार

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