धार्मिक

ज्योतिष शास्त्र का विद्वान था रावण, नहीं बदल सका अपना भाग्य

दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि उत्सव का दसवां दिन है। आज देशभर में दशहरा का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता रहा है। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त के बारे में।
15 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन दोपहर 2 बजकर 1 मिनट से दोपहर 2 बजकर 47 मिनट तक विजय मुहूर्त है। इस मुहूर्त की कुल अवधि 46 मिनट की है। दोपहर को पूजन का शुभ समय 1 बजकर 15 मिनट से दोपहर 3 बजकर 33 मिनट तक है।

दशहरे पर शुभ योग का समय
दशहरा पर इस साल तीन शुभ योग बन रहे हैं। 14 अक्टूबर को रवि योग शाम 09 बजकर 34 मिनट से शुरू होगा। जो कि 15 अक्टूबर की सुबह 09 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग 15 अक्टूबर की सुबह 06 बजकर 2 मिनट से सुबह 09 बजकर 15 मिवट तक रहेगा। इसके अलावा कुमार योग सूर्योदय से लेकर सुबह 09 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इस तीन शुभ योग में दशहरा पूजन करना अत्यंत लाभकारी रहेगा।

बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में पूरे देश में यह त्योहार मनाया जाता है। बता दें, दशहरा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। इसके बाद से ही इस त्योहार को मनाने की परंपरा चली आ रही है। वहीं इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का भी संहार किया था। इसलिए इसे असत्य पर सत्य की जीत के तौर पर भी मनाते हैं।

नहीं बदल सकते भाग्य
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं और आप कहां हैं। आप अपना भाग्य नहीं बदल सकते और अपने से बच नहीं सकते। आप रावण को देख सकते हैं। वह इस दुनिया के सबसे महान ज्योतिषी रह चुके है। लेकिन उन्होंने अपने ज्ञान और बुद्धि का इस्तेमाल कर वह अपनी किस्मत नहीं बदल सके। रावण के विकल्प था कि वह पूरे मान सम्मान के साथ माता सीता को भगवान राम तक पहुंचा दें। लेकिन फिर भी उन्होंने आसन्न कयामत से बचने के लिए अपनी ताकत और ज्योतिष शास्त्र का उपयोग करना चुना।

भगवान हनुमान को शनि का आशीर्वाद
रावण ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता था। रावण चाहता था कि उसका पुत्र दीर्घायु और सर्व शक्तिमान हो। इसीलिए जब रावण की पत्नी मंदोदरी गर्भ से थी तब रावण ने इच्छा जताई की उसका होने वाला पुत्र ऐसे नक्षत्रों में पैदा हो जिससे कि वह महा-पराक्रमी और दीर्घायु वाला हो। ऐसे में सभी ग्रहों को मेघनाथ के जन्म के समय शुभ और सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया । रावण के डर से सारे ग्रह रावण की इच्छानुसार शुभ व उच्च स्थिति में विराजमान हो गए, लेकिन शनिदेव को रावण की ये बात पसंद नहीं आई। जिसके बाद रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया था।

जब हनुमान जी माता सीता की तलाश में लंका पहुंचे तब उन्होंने शनि महाराज को रावण की कैद से आजाद कराया था इसलिए शनि देवता ने यह वचन दिया था कि जो भी हनुमान जी की पूजा करेगा मैं उसे कभी कष्ट नहीं दूंगा। इसीलिए शनि या साढ़े साती के निवारण के लिए हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए।

शुभ मुहूर्त की शक्ति
रामायण में ऐसे कई संदर्भ हैं जहां शुभ मुहूर्त के दौरान शुभ कार्य किए जाते थे. रामायण के “अयोध्या कांड” में राशियों के संदर्भ हैं। कुछ संस्कृत छंद नक्षत्र और ग्रहों के साथ कर्क राशि में जन्म लेने वाले भगवान राम के बारे में बात की गई है।

ग्रहों की अनुकूलता की जांच के बाद अनुकूल मुहूर्त में विवाह संपन्न हुए।
यहां तक ​​​​कि शक्तिशाली रावण के खिलाफ महाकाव्य युद्ध भी भगवान राम द्वारा एक ग्रह पारगमन के दौरान शुरू किया गया था।

मन ही तय करता है हमारा कर्म
भगवान राम और रावण दोनों की कुंडली समान रूप से मजबूत थी। दोनों के साथ पंच-महापुरुष योग और उच्च में पांच ग्रह थे। दोनों में बुध का नीच भंग राज योग था। दोनों एक महान में पैदा हुए थे राम के लिए मजबूत सूर्य और दसवें घर में रावण के लिए मजबूत बृहस्पति के कारण वंश। पर क्या दोनों चार्टों को अलग किया उनका मन (चंद्रमा) था। रावण का चंद्रमा पापी शनि के साथ स्थित था। जबकि भगवान राम का चंद्रमा शुभ बृहस्पति के साथ था जिसके परिणामस्वरूप उनके जीवन का उद्देश्य पूरी तरह से अलग हो गया।

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