माता के नौ स्वरूपों की आराधना से बनेंगे भक्तों के बिगड़े काम
नवरात्रि का नाम सुनते ही मन में पावन उमंग का संचार उमड़ पड़ता है। यह हिंदू धर्म का एक अति पावन पर्व माना जाता है। इस दौरान चारों तरफ भक्तिमय माहौल छाया रहता है। माता दुर्गा के मंदिर साज सज्जा से होने से आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। शंख की ध्वनि, घंटो की टंकार से साधकों में आस्था की ज्योति जलने लगती है।
भागवत पुराण के अनुसार प्रतिवर्ष ऋतु चक्रों पर आधारित चार नवरात्रों का आगमन होता है, जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि होते हैं। बाकी चैत्र एवं शारदीय नवरात्रों में सनातन धर्मी मां दुर्गा के अलग अलग नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना कर माता की कृपा प्राप्त करते हैं।
चैत्र नवरात्रि का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व
प्रधानाचार्य से सेवानिवृत शिक्षाविद् एवं साधक सत्य प्रकाश मिश्र ने बताया कि शारदीय एवं चैत्र नवरात्रों में से चैत्र नवरात्रि का धार्मिक रूप से विशेष महत्व है। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन ही आदिशक्ति मां जगदम्बा प्रकट हुई थी। उनके प्रादुर्भाव के उपरांत देवी के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का शुभ कार्य प्रारंभ किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नव वर्ष प्रारंभ होता है।
इसके अतिरिक्त तृतीया को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अपना प्रथम अवतार, एवं नवमी को भगवान राम के रूप में सातवां अवतार लिया था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्रि का अधिक महत्व है। इसी दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन भी होता है। सूर्य सभी बारह राशियों का चक्र पूर्ण करने में बाद पुनः में राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए ज्योतिषीय दृष्टि से भी चैत्र नवरात्रि का महत्व है।
ये हैं माता के नौ स्वरूप
श्री दुर्गा सप्तशती में माता के सभी नौ रूपों का वर्णन करते हुए लिखा गया है।
प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।