खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत, शाम को होगा छठी मैया का आगमन
प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य और छठी मैया के लिए किया जाने वाला छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा किसी कठिन तपस्या से कम नहीं है। जिसमें व्रतधारी पूरे विधि-विधान से प्रत्येक नियम का पालन करते हुए अपनी पूजा को संपूर्ण करने का प्रयास करते है। छठ महापर्व में अस्तगामी एवं उदयगामी सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
मान्यता है कि इस पावन व्रत को करने के बाद इसे कभी छोड़ा नहीं जाता है। व्रत की इस पावन परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती ही जाती है। यह व्रत प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है। लेकिन कुछ पुरुष भी इसे मंगलकामना रखते हुए करते है। छठ पूजा में व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है।
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व का आज दूसरा दिन है। आज कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है।
छठ पूजा में खरना प्रसाद का बहुत महत्व है। मान्यता है कि प्रसाद को अधिक से अधिक बांटा जाए तो उसका पुण्य फल अधिक मिलता है। इसी कामना के साथ खरना प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों को वितरित करने के लिए लोगों को बकायदा आमंत्रण भी दिया जाता है। वैसे इस व्रत का प्रसाद माँगकर खाने का विधान है।
छठ पूजा के लिए भोग प्रसाद बनाने के लिए कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है। जैसे स्नान करने के बाद नये कपड़े पहनकर ही भोग बनाया जाता है। भोग बनाते समय हाथों में अंगूठी नहीं पहनने की भी मान्यता है। कुछ जगह पर बगैर चीनी के दूध की खीर बनाई जाती है तो कहीं पर गुड़ की खीर के साथ पूड़ी का भोग लगाने की परंपरा है। वहीं कुछ जगह पर मीठे चावल भी चढ़ाए जाते है।
छठ पूजा से जुड़ा खरना प्रसाद में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। खरना प्रसाद को बहुत ही पवित्रता के साथ बनाया जाता है।
शुक्ल पंचमी के दिन एक बार भोजन करना होता है। इसके बाद षष्ठी के दिन प्रातः काल व्रत का संकल्प लेते हुए पूरे दिन निराहार व्रत रहना चाहिए।फिर किसी नदी के किनारे जाकर फल, पुष्प, घृत पक्व नैवेद्य, धूप, दीप आदि से भगवान् सूर्य का पूजन करना चाहिए। रक्त चंदन और रक्त पुष्प भगवान् सूर्य की पूजा में विशेष रूप से रखने चाहिए। अन्त में तांबे के पात्र में शुद्ध जल लेकर उसमें रोली, पुष्प, अक्षत डालकर उस जल से भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
मान्यता है कि पंचमी की शाम को ही छठी मैया का आगमन हो जाता है और षष्ठी के दिन भगवान सूर्य के साथ उनकी भी विशेष रूप से प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। उदयगामी अर्घ्य के पश्चात् उनका विसर्जन किया जाता है।