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डॉलर के मुकाबले 77 रुपए तक फिसला रूपया, ब्रोकरेज का अनुमान 80 तक फिसलेगा

वैश्विक राजनीति में भूचाल आया हुआ है जिसके कारण इकोनॉमी हिल गई है। और इंडियन करेंसी की वैल्यु में भारी गिरावट देखी जा रही है। सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया इतिहास में पहली बार 77 रुपए के स्तर पर पहुंच गया। हालांकि आज इसमें 20 पैसे से ज्यादा की मजबूत देखी जा रही है। रुपए पर जारी दबाव को लेकर ब्रोकरेज का कहना है रुपया 80 के स्तर तक फिसल सकता है।

इकोनॉमिक टाइम्स 14 ब्रोकरेज, बैंक्स और ट्रेजरी डिपार्टमेंट से बातचीत के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है। इनका कहना है कि पूरी दुनिया के निवेशक सुरक्षित निवेश की तरफ आकर्षित हो रहे है। इसके कारण डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपए में गिरावट देखी जा रही है। इनका कहना है कि अगर यूक्रेन क्राइसिस का कुछ हल नहीं निकलता है। तो रुपए में गिरावट की रफ्तार तेजी होगी।

CR Forex के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित पबारी का कहना है कि कमोडिटी की कीमत में तेजी के कारण भारत का एक्सटर्नल बैलेंस कमजोर हो सकता है। पिछले एक महीने में जिस तरह घटनाएं हुई हैं। वह हाल-फिलहाल में ठीक होने वाली नहीं है। रुपए में सुधार लाने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया दखल दे सकता है। लेकिन फंडामेंटल कमजोर होने के कारण ट्रेडर्स रुपए पर लंबी दांव नहीं खेलेंगे। विदेशी निवेशक इमर्जिंग मार्केट से लगातार पैसा निकाल रहे हैं और सुरक्षित निवेश की तरफ रुख कर रहे है। अक्टूबर महीने से अब तक FPI 2 लाख करोड़ से ज्यादा भारतीय बाजार से निकाल चुके है।

80 तक इसी साल फिसल सकता है रुपया
इस सर्वे के मुताबिक, साल 2022 में रुपया डॉलर के मुकाबले 77.93 के स्तर तक फिसल सकता है। 2 ब्रोकरेज का तो ये भी कहना है कि इस साल रुपया डॉलर के मुकाबले 80-82 तक पहुंच सकता है। Zenith FinCorp के सीईओ सौरभ गोयनका ने कहा कि कैलेंडर ईयर 2022 में रुपया फिसल कर 80 तक पहुंच सकता है। रिजर्व बैंक सरकार के बॉरोइंग प्रोग्राम में मदद की पूरी कोशिश करेगा। इसके लिए वह उदार रुख पर कायम रहेगा। इसका मतलब है कि वह इंट्रेस्ट रेट में अभी बढ़ोतरी नहीं करना चाहेगा। गिरता हुआ रुपया सिस्टम में रुपए की लिक्विडिटी पैदा करता है। यह विदेशी निवेशकों को लोकल डेट के लिए लुभाता है।

जल्द खत्म होगी रुपए की वोलाटिलिटी
हालांकि, ट्रेडर्स का मानना है कि रुपए में जारी वोलाटिलिटी बहुत जल्द खत्म होगी। अगर यूक्रेन क्राइसिस लंबी अवधि के लिए जारी रहती है। तो इसका फाइनेंशियल मार्केट पर बहुत बुरा असर होगा। अमेरिका और यूरोप रूस पर एक के बाद एक आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे है। इसका असर ये होगा कि कच्चे तेल और गैस का भाव और बढ़ेगा। यह इंडियन करेंसी के लिए ठीक नहीं है।

खुदरा महंगाई में आ सकता है और उछाल
भारत के लिए महंगा कच्चा तेल ठीक नहीं है। भारत जरूरत का 85 फीसदी तेल आयात करता है। तेल की कीमत बढ़ने से इंपोर्ट बिल बढ़ जाएगा, जिसके कारण ट्रेड डेफिसिट बढ़ेग। महंगे तेल के कारण खुदरा महंगाई में भी तेजी देखने को मिलेगी। इससे रुपए में और गिरावट आएगी।

सरकार के पास दो विकल्प है
जेफरीज का कहना है कि सरकार के सामने दो विकल्प है। कमोडिटी में उछाल के कारण भारत की माइक्रो और मैक्रो इकोनॉमी कमजोर हो गई है। अगर सरकार टैक्स में राहत देकर क्रूड के भाव में उछाल को मैनेज करती है तो फिस्कल डेफिसिट बढ़ेगा। अगर ट्रेड डेफिसिट बढ़ता है तो रुपए पर दबाव और बढ़ेगा. अगर कच्चे तेल के भाव पर कंट्रोल नहीं किया जाता है तो महंगाई में भयंकर तेजी आएगी. वैसे रिजर्व बैंक के पास रुपए में गिरावट को रोकने के लिए पर्याप्त कैपिटल है। अभी RBI के पास 633 बिलियन डॉलर का रिजर्व है।

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