पंचतंत्र

PanchTantra-टका नहीं तो टकटका भाग-5

एक बार पिंगलक को प्यास लगी तो वह अपना लाव-लश्कर साथ लिए यमुना के किनारे चला। वह पानी के पास पहुंचता, इससे पहले ही उसे दूर से आती हुई संजीवक की दहाड़ सुनाई दी। राजा वीर तो होता है पर उसे अपने चारों ओर खतरे ही खतरे दिखाई देते हैं इसलिए उसे हर समय चौकन्ना रहना होता है।

आवाज सुनते ही वह सकते में आ गया। वह बिना पानी पिए ही दुबक कर वहां से पीछे लौट आया। इस तरह की डरावनी दहाड़ से उसका इससे पहले पाला नहीं पड़ा था। उसने सोचा, जिसकी दहाड़ इतनी भयावनी है वह इतना ही भयंकर भी होगा। भागना भी खतरे से खाली न था।

अब वह चतुर्मंडल व्यूह बना कर एक बरगद के नीचे आ बैठा। बीच में राजा, चारों ओर मंत्री, उनके चारों ओर सामंतगण, और उसके बाद नौकर-चाकर और उसके आगे चर और सीमापाल आदि। समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे। उससे न तो आगे बढ़ा जाए, ना ही पीछे हटा जाए।

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