साइबर संवाद

सवर्ण क्या भारत का भाग्य बदल सकते हैं

सवर्ण क्या भारत का भाग्य बदल सकते हैं?

#घंटा*, क्योंकि संघ को तुम्हारी अब जरुरत नहीं अब उन्हें OBC यानी 52 % वाला भाग मिल चुका है। ये पोस्ट थोड़ा लम्बा है लेकिन जब पूरा पढ़ेंगे तो समाज का मनोविज्ञान समझ जायेंगे।

इधर दो महीने से मैंने देखा है की मेरे फेसबुक पर बहुत से सिंह,ठाकुर (राजपूत), पाठक, पांडेय, दुबे, गुप्ता, पंजाबी मित्र सूची में रिक्वेस्ट भेज रहे हैं। मुझे अपनी फ्रेंड सूची बढ़ाने का कोई शौक नहीं है, और ना ही like लेने की आतुरता है। मेरा मत है की मैंने जो अनुभव और ज्ञान प्राप्त किये हैं वो अपने वाल पर लिखा जाये और अपने कुछ खास पसंदीदा मित्रों को टैग करके उनकी राय लिया जाये की इस विषय पर इस राय के अलावा कोई और राय हो जो मेरे से बेहतर हो ताकि अपना ज्ञान और बढ़ा सकूं।

इसलिए उन नए मित्रों के रिक्वेस्ट को मैं जल्दी एक्सेप्ट नहीं करता बल्कि उनके प्रोफाइल और पोस्ट को गहनता से अध्ययन करता हुं ताकि पता चले कि वो क्या हैं। हां संघ के एजेंडा जानने के लिए मैंने 20 संघी मित्र रख रखे हैं। जो peon से लेकर CFO तक हैं। सरकारी क्लर्क से लेकर रिटायर्ड IAS तक। इनसे एक बात पता चलता है की ये किसी भी स्तर के प्राणी हों लेकिन अगर संघी हैं तो peon से लेकर वो आईएएस भी एक ही सोच रखता है। ये नहीं की उस विषय पर अलग अलग ज्ञान रखें। लगता है की सारे नागपुर सर्वर से किसी चिप के माध्यम से जुड़े हुये हैं, और एक ही नरेटिव चलाते हैं।

तो इसी बात को लेकर एक दिन मेरी अपने दो मित्रों से बात हो रही थी। एक Girish Virmani जी और दूसरे Ajir Yadav जी। दोनों का टॉपिक अलग-अलग था लेकिन केंद्र एक ही था। और आज मैं आपलोगों को उस सामाजिक मनोविज्ञान की बात बताने वाला हुं। ये पोस्ट लम्बी हो सकती है लेकिन जब पूरा पढ़ लेंगे और अपने आस-पास के वातावरण को पाएंगे तो इसे आप 100 प्रतिशत सत्य होते हुए देखेंगे। आप इसे save करेंगे क्योंकि ये आपको जबरदस्त लगेगा।

बात की शुरुवात #गिरीश_विरमानी से करता हुं, उसने भी कहा की “कौशल सर आजकल #सवर्ण लग रहा है जाग रहा है। मेरे पास सैकड़ों मित्रों के फ़ोन आने लगे हैं कि मैं सही था और वो भटक गए थे ”

मैंने कहा “ये एक #छलावा है असल में वो जागे नहीं है बल्कि इन दिनों में #मोदी_की_नीति के कारण उनके जीवन में #बुरे_बदलाव आ रहे हैं। किसी का धंधा जा रहा है तो किसी की नौकरी खतरे में है। किसी की नौकरी चली गयी है। और अब उन्हें लग रहा है की उनसे गलती हो गयी है। लेकिन सच्चाई ये है की न तो उनके सबकॉन्सस माइंड से वो जहर गया है और न उनके विचार से। आज भी मोदी मुसलमान के प्रति जहर उगले तो वो फिर वाह-वाही करने लगेंगे। उनका बदलाव नकली है”

गिरीश_विरमानी ने उतावलेपन से कहा “आप बिलकुल सही कह रहे है सर। आपसे बात करके ये गज़ब मनोविज्ञान का पता लगता है। बिलकुल सही कहा आपने की इनके साथ मोदी की नीति के कारण बुरा हुवा है, इसलिए ये आजकल हमारी बातो को तरजीह दे रहे हैं। तो क्या ये कभी नहीं जागेंगे और क्या इनके जागने से देश का कोई फायदा होगा?”

मैंने कहा “अब तुमने सही प्रश्न पुछा। ये जरूर जागेंगे। अभी 2 से 3 साल और लगने वाले हैं। इसके पीछे का मनोविज्ञान कुछ ऐसा है की सवर्ण में लाख बुराई हो लेकिन एक जबरदस्त अच्छी बात यह है की वो जिन्दा रहने के लिए नहीं जीते, बल्कि वो हमेशा खुद को बेहतर करने के लिए प्रायसरत रहते हैं।

और सवर्णों के कारण ही इस देश में अर्थव्यवस्था का जोर है। इन्हीं के अंंदर वो सोच है की वो लक्जरी पर पैसा कमाकर खर्च करने का हिम्मत रखते हैं। उनमें शिक्षा प्राप्त करने की भूख होती है। यहाँ तक कि सवर्ण अपने बच्चों के शिक्षा पर अपना जमीन-जायदाद तक बेंच देते हैं। उच्च शिक्षा के लिए वो बैंक से लोन लेने में भी घबराते नहीं हैं। ये इन्हें जीवट बनाता है। रिस्क उठाने में ये वर्ग आगे रहता है।”

“बात आपने सही कहा सर। मेरे पिताजी ने भी मुझे शिक्षा दिलाने के लिए अपनी जमीन तक बेच दी और अंत में मुझे आगे की पढ़ाई के लिए लोन भी लेना पड़ा। और जब मैं बड़े पद पर आ गया हुं तो लोन भी चुका दिया और बेहतरीन घर भी ले लिया और वो भी बिना EMI के ” गिरीश बाबू ने कहा।

मैंने कहा “बिलकुल, लेकिन सवर्णों के इस आगे बढ़ने के मनोविज्ञान और सवर्णों के शिक्षित होने के भाव को संघ ने जबरदस्त तरीके से इनकैश किया। संघ ने जान लिया था की सवर्ण शिक्षित है तो इसने इस जीवट समाज के लोगों में और आगे बढ़ने की ललक को ललचाया और मोदी का फर्जी गुजरात मॉडल को एक दिव्यसवप्न के रूप में सामने रखा।

सवर्णों को लगा की आज कमाई का 60 से 70 % हिस्सा जो EMI में जाता है अगर मोदी आ गया तो इतना देश आगे बढ़ेगा की उनके जीवन में खुशियां ही खुशियां आ जाएंगी और इस मनोविज्ञान के कारण वो संघ के प्रति आकर्षित रहा।

दूसरे, संघ जानता था की सवर्ण जीवट है और अगर ये स्वप्न पूरा न हुवा तो बिदक जायेगा तो उनके मन में धर्म के प्रति खेल—खेला की मुस्लिम की जनसँख्या बढ़ गयी तो वो बर्बाद हो जायेंगे। और यहाँ बर्बाद सर्वाइवल का प्रश्न था। तो मुस्लिम नफरत के इर्द गिर्द कई फेक प्रोपेगेंडा चलाये और विपक्षी पार्टियों को मुस्लिम परस्त बताया। इसके पीछे संघ का ये मनोविज्ञान था की इन लोगों को जब पता चलेगा की संघ ने आर्थिक रूप से इनको बेवकूफ बनाया है तो भी ये मुस्लिम नफरत के और मुस्लिम की जनसँख्या बढ़ गयी तो हिन्दू खतरे में आ जायेगा, इसके डर के कारण वो दूसरे दल को वोट नहीं देंगे।

तीसरी मनोविज्ञान कि सवर्ण शिक्षित है और उंचे पदों पर भी है तो इनके द्वारा फैलाया गये प्रोपेगेंडा को समाज का दुसरा वर्ग यानी OBC और दलित वर्ग जल्द मान लेगा। क्योंकि उन्हें पता है की शिक्षित लोगों को ज्यादा इतिहास भूगोल विज्ञान पता होता है।” अलावा इसके शिक्षित वर्ग बेवकूफ भी जल्दी बनता है।

” यानी सवर्णों के इन तीनों मनोविज्ञान का संघ ने खूब दोहन किया और अभी जो सवर्ण अपने आपको सुधरते दिखा रहे हैं, वो असल में पहले वाले मनोविज्ञान के टूटने के कारण दिखा रहे हैं। लेकिन गिरीश बाबू अभी survival का डर वाला मनोविज्ञान इनके जहन में घर करके बैठा हुवा है और जबतक संघ की तरफ से —कि मुस्लिम के डर से बड़ी सवर्णों को कोई और survival का डर वाला ही खतरा न लगे तब तक ये डर नहीं जायेगा। प्रकृति उसके लिए २ से ३ साल का वक्त चुन रखी है ”

गिरीश बाबू चुपचाप सुन रहे थे “सुन रहे हो गिरीश बाबू” मैंने कहा

“हां सर, लेकिन वाकई दिमाग झन्ना गया। मानो आपने पूरी फिल्म चला दिया है।”

“बात तो ठीक है, लेकिन ये तीसरे मनोविज्ञान का खेल तो जबरदस्त है और ये इतना मज़बूत है की संघ के लिए भाड़ में जाय सवर्ण वाली बात आ गयी है। संघ को सत्ता चाहिए। सवर्ण से मिले या एन्टी मुस्लिम से या दलित से या obc से, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। तो तीसरा मनोविज्ञान ये है की संघ ने इन शिक्षित सवर्णों के मदद से जो प्रोपेगेंडा फैलाया है, आज वो 90 प्रतिशत OBC के दिमाग में घर कर बैठा है और क्यों न हो क्योंकि भगवान का चमत्कार सबसे ज्यादा OBC ने देखा है।

ये वर्ग, किसान वर्ग रहा है और पढ़ाई उतना नहीं किया। लेकिन इसके जीवन में जो बदलाव आया वो ईश्वरीय चमत्कार के जैसा ही रहा है। जो पार्टी राम यानी ईश्वर को लेकर चलेगी उसके साथ ये वर्ग जुड़ गया है।

इसे धर्म से कोई लेना देना नहीं होता। लेकिन धर्मांध ये सबसे ज्यादा है। कांवर यात्रा इन्हीं के बल पर होती है। केदारनाथ यही जा रहे हैं। अर्धकुम्भ क्या एक चौथाई कुम्भ करा लो 15 करोड़ की संख्या में गंगा नदी के गंदे पानी में हर-हर गंगे कहकर नहाने ये जाने लगा है। एकादशी हो या त्रयोदशी, अगर प्रोपेगेंडा चला दी तो ये इसके अलावा सप्तमी में भी गंगा स्नान करने करोड़ों में चले जायेंगे और जा रहे हैं। अलावा संघ इनपर फूल भी तो बरसा रहा है।”

“अब संघी नेता बोलने लगे हैं की सवर्ण ये न सोचे की अब हमें उनके वोट की दरकार है”

गिरीश बाबू बोल पड़े की “सर ये क्या खेल है” मैंने जो बताया वो सुनकर गिरीश जी के पाँव जमीं तले खिसक गये और बोलने लगे कि “सर इसे मैंने प्रत्यक्ष रूप से नोएडा में देखा है। गुर्जरो और जाटों के साथ”

वो क्या था, तो उसे आगे लिखने से पहले मैं आपको बता दूं कि #AjirYadav जी ने उसके 3 दिन बाद इसी प्रश्न का उत्तर लेने के लिए फ़ोन किया कि “कौशल भैया मेरे एरिया में बहुत से यादव बंधू हैं और वो कट्टर हिन्दू बनकर संघ की प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं। जबकि उन्हें पता ही नहीं की इतिहास क्या है। वो उतना पढ़े भी नहीं हैं। मैं चाहता हूं कि उनको बताऊं और इसके लिए मैं आपका और Manish Singh जी का लेख भेजता रहता हूं। लेकिन इसके बावजूद उनके मन में जहर फ़ैल गया है”

मैंने कहा की “उनके मन का जहर न तो मेरे लेखों से जायेगा और न ही Manish Singh जी के लेखों से। ये जिस मनोविज्ञान के गुलाम हैं, जबतक वो तिलिस्म नहीं टूटेगा ये नहीं जागेंगे”

अजीर यादव बोले “क्या है वो”

मैंने बोला “ईश्वर का चमत्कार”

वो चौंक गए और बोले “ईश्वर का चमत्कार” मैंने कहा “जी ईश्वर का चमत्कार और अगर आप धैर्यपूर्वक सुनेंगे तो आपको पता चलेगा की ईश्वर का चमत्कार सबसे ज्यादा इनके साथ हुआ है।इसीलिए ये आज धर्मान्ध बने हुये हैं। धर्म के बारे में इनको कोई ज्ञान नहीं है, लेकिन धर्म के सिपाही बने हुये हैं”

“हुआ क्या है कि भारत की आर्थिक उन्नत्ति के इस दौर में बड़े बड़े उद्योग, वेयरहाउस और सड़कों का निर्माण होना था और इसके लिए सरकार को शहर के बाहर की जमीन चाहिए थी। ये जमीन इन OBC वर्ग, जो ज्यादातर किसान वर्ग रहा है के पास थी। इसमें जाट, गुर्जर, अहीर, पटेल, तेली और दूसरा वर्ग रहा है।

खेतों में बहुत मेहनत करने के बाद भी इनका जीवन स्तर ठीक नहीं हो पाता था। लेकिन ये क्या हुआ कि एक ही दिन में इनकी जमीन बिक्री से इनको जो पैसा मिला वो जबरदस्त था। वो ये कभी सपने में भी सोच नहीं पाए थे। एक-एक किसानों को करोडों रूपये, एक ही रात में मिले तो इनकी तो किस्मत ही बदल गई।

एक साल के अंदर इन्होंने अपना घर का ढांचा ही बदल दिया। बँगला बनाये और स्कार्पियो और फॉर्च्यूनर जैसी गाड़ियां ले लिए। जमीन बिक गयी थी तो किसानी के तौर पर इनके पास अब भैंस पालन ही बचा था। तो उन पैसों से ये कई दर्जन नई मुर्रा भैंस ले आये।
इनके दूध उत्पादन को बड़े-बड़े मिल्क हाउस खरीदने लगे। यानी देखा जाय तो इनको ये बदलाव ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं लगा। यही कारण रहा की ये ईश्वर के भक्त हो गये। पढ़े-लिखे कम थे तो TV के माध्यम से संघी बाबाओं का प्रवचन ये सुनने लगे और इनके मन में विश्वास और बढ़ता गया। संघ ने OBC बाबा की भरमार कर दिया।”

इन्होंने कभी इस बात पर शोध नहीं किया की ये पैसा ईश्वर ने नहीं बल्कि मनमोहन के आर्थिक और औद्योगिक निति के कारण आया है। इन्हें इन संघी बाबाओं ने यही बताया की इस जीवन में जो कुछ भी होता है वो पिछले जन्म के कर्मों का फल है। इन्हें लगा कि अगर धर्म-कर्म में ये भाग लेंगे तो इनका आगे का जीवन तो सुधरेगा ही, अगले जन्म में भी सुख का निवास होगा।”

इससे इनमें एक मनोभाव जगा कि मेहनत से कुछ नहीं होता। सबकुछ ईश्वर की कृपा से होता है। किसानी करते वक्त खूब मेहनत करते थे, लेकिन रात को रोटी और छाछ खाकर जीवन जीते थे। लेकिन जैसे ही ईश्वर की कृपा से दिन फिरे, आज गाडी है, बँगला है, और 2 भैंस की जगह 30 भैंसें हैं।

अब आप देखिये, आज भी ये भैंस ही पाल रहे हैं। जमीन बिक गयी, तो भैंस ही सहारा है। लेकिन फर्क है। फर्क ये है की अब भैंस का चारा ये फॉर्चूनर और स्कार्पियो की गाडी में लाते हैं। पहले भैंस गोबर और मूत्र देती थी, तो इन्हें हाथ से उसे साफ़ करना पड़ता था। अब पैसे आने के बाद इन्होंने भैंसी की किस्मत भी चमका दिया है।

अब इनका खटाल बड़ा हो गया है। भैंस जहां खाती थीं, वो सीमेंटेड करके ढ़लान बना दिया गया है। अब इनकी भैंस गोबर और पेशाब करती है तो इन्हें हाथ से नहीं साफ़ करना पड़ता, बल्कि बाजार से वाईपर लेकर आ गए हैं। मोटर की मदद से पाइप से धो देते हैं और और भैस को गर्मी न लगे इसके लिए कई कूलर लगा रखे हैं।

जबकि, जब मैंने शोध किया तो ये पाया की ये कूलर भैंस के लिए नहीं था। चूंकी जमीन तो बिक चुकी है, तो खाली समय में ये खटाल में चारपाई डालकर हुक्का पीते रहते हैं और कूलर इन्होंने अपने लिए ही लिया है। इसका फायदा भैसों को भी हो रहा है। यही नहीं, अब तो ये भैंस का दूध निकालने के लिए टेक्निक का इस्तेमाल भी करने लगे हैं। भैंसों के थन में मशीन लगाते हैं और दूध निकलना शुरू हो जाता है। ये मजेदार जीवन इन्होंने किसानी के रूप में कभी नहीं देखा था। बस जिसको धन्यवाद देना था उसे न देकर ये ईश्वर को देने लगे।”

इसके अलावा ये लोग अब 12 महीने में काम से ऊब जाते हैं तो सावन में कांवर यात्रा इनके मनोरंजन के लिए है ही। और जब कांवर यात्रा में फूल की वर्षा होने लगे, फिर तो ये खुद को राम के भक्त से कम नहीं समझते हैं। खुद को भक्त शिरोमणि हनुमान से कम नहीं मानते और गाडी के पीछे हनुमान की फोटो भी लगाकर घूमते है। फिर कांवर क्या, अर्ध कुम्भ में ये 15 करोड़ नहाएंगे। संघ हर वो कोशिश करेगा की ये अंधभक्ति इनकी ना टूटे ”

अजीर जी, चुपचाप सुन्न होकर सुन रहे थे। ये सारा मनोविज्ञान उनके आँखों के सामने से जा रहा था और गिरीश विरमानी तो मानो पगला गए थे की “सर क्या बात है इनकी पूरी सोच को आपने शीशे की बोतल में डाल दिया है।”

मैंने कहा की “अभी फिल्म बाकी है। अब पैसा इनके पास आ गया है तो इनसे भी बड़ा जबरदस्त मनोविज्ञान इनके बच्चों में आया है। समाज में दिखाने के लिए ये वर्ग अब अपने बच्चों को डीपीएस, रेयान, डॉन बोस्को में डाल तो दिया की समाज में दिखा सके कि “म्हारा छोरा भी कतई कम ना किसी से “लेकिन इनके बच्चों में एक जबरदस्त मनोविज्ञान घर कर गया है।

अच्छे स्कूल में चले गए हैं लेकिन ये बोलते पाए जाते हैं “के करेगा पढ़के, मारा बापू तो बिन पढ़े ही करोडपति बन लियो और आज महीने के दूध बेचके लाखों रुपया कमा रिया सी” ये लड़के उन स्कूल के बैक बेंचर के हीरो बने पड़े हैं। लड़ाई झगड़ा इनका मुख्य काम रह गया है। PTM यानी पेरेंट-टीचर-मीटिंग में इनके पिताजी का जबरदस्त रोल सामने आता है।

टीचर जब प्रोग्रेस रिपोर्ट की बात करती है तो इनका जबाब जबरदस्त होता है ” मैडम के बताऊं, हमने तो अंग्रेजी आवे को नी, हम तो पढ़े लिखे ना हैं। अंग्रेजी में हाथ तंग है। मैडम जी हम तो सकूल की फीस दे सके हैं। टूशन-फी दे सके हैं।

अब स्कूल छोड़िये, घर पर भी इनके बच्चे अब ठीक से नहीं पढ़ पा रहे हैं। ऐसा नहीं है की अनपढ़ माता-पिता के बच्चे आगे नहीं बढे हैं। सवर्णो के अनपढ़ माता-पिता के बच्चे, मैंने बहुतायत में आगे बढ़ते देखे हैं।

संघ ने इन्हीं 52 प्रतिशत जनता को धर्मान्ध बनाया हुआ है और ये आजकल मज़े में हैं। ये तब जागेंगे जब अर्थव्यवस्था डूबेगी और इनकी भैंस के दूध को जो आज हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री की रीढ़ बना हुआ है, वो बंद हो जाएगी। दूध का रेट आधा हो जायेगा। जमीन बिक चुकी है, अब खटाल की भैंस अगले पीढ़ी में बिकेगी। दारू वैसे भी खूब पीते हैं। इसलिए जबतक मौज है ये मजे से जीयेंगे उसके बाद जब सब नष्ट हो जायेगा तब जागेंगे, तबतक बहुत देर हो चुकी होगी।

संघ इनके लिए कभी कांवर, कभी रामलीला, कभी बाबा, तो कभी कुम्भ, तो कभी एकादसी स्नान और कभी त्रयोदसी स्नान का प्रबंध करता रहेगा। ये लोग जाते रहेंगे और फूल वर्षा होती रहेगी एवं जितना ये डूबकर गंगा स्नान करंगे ये देश उतना ही डूबता जायेगा।

अजीर यादव बोल पड़े “कौशल भैया, आपने जबरदस्त तरीके से इस मनोविज्ञान को समझाया है और मुझे अब उम्मीद की कोई किरण नहीं नज़र आ रही है”

मैंने कहा “ऐसा नहीं है मित्र। प्रकृति मेहनत का फल देती है। आज जो संघ को सत्ता मिली है वो एक दिन की मेहनत नहीं है। इन्होंने 90 साल तक कठिन मेहनत किया है। तब जाकर देश को बर्बाद करने की ताकत इन्हे मिली है। हमारा भी कर्तव्य है की हम लोगों को जगाते रहें और प्रकृति इतनी अभिशापित नही है। 2 से 3 साल में जो होने वाला है उससे इन सबकी नींद खुलेगी। 14 करोड़ मज़दूर बेरोजगार हुये हैं। अभी 12 करोड़ मिडिल क्लास भी होने वाला है।

इसी के सापेक्ष आपने देखा ही कि हमारे प्रधानमंत्री जी देश के 80 करोड़ लोगों को पांच किलो गेहूं और एक किलो चने की दाल देने की बात किये ही हैं। गरीबी का आकलन आप स्वंय कर लीजिए। सरवाईवल का नया डर आने वाला है। और मैं वादा करता हूं कि ये वार्तालाप, मैं लोगों के सामने भी रखूँगा। जिससे वो जानें और लोगों को इस मनोविज्ञान को समझाएं।

गिरीश विरमानी को तो दोनों बात बताई थी। अजीर का प्रश्न केवल स्पेसिफिक था तो स्पेसिफिक बात बताई, लेकिन लेख में मैंने दोनों को एक करके लिखा है।

पढ़कर कैसा लगा जरूर समझिये और लोगों को भी समझाईये।

सौजन्य:
कौशल किशोर की वॉल से

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