सीएए नागरिकता लेगा नहीं देगा
सिटीजन अमेण्डमेन्ट बिल, जिसपर देश की बहुत सी राजनीतिक पार्टीयों ने अपना समर्थन देकर लोकसभा और राज्यसभा में इसे पास कराया और इसके बाद इसपर भारत के राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर होते ही इसने अध्यादेश का रूप ले लिया जिसे अब सीएए यानी सिटीजन अमेण्डमेन्ट एक्ट कहना ही उचित है, नाकि सीएबी (सिटीजन अमेण्डमेन्ट बिल)। अब ये बिल ना होकर राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर होते ही एक्ट हो गया है।
बहुत सी राजनीतिक पार्टीयों ने इसे लोकसभा और राज्यसभा में पास कराकर अब अपने-अपने राज्यों में इसे लागू ना करने की बात करके संसद का अपमान कर रहे हैं। उन्हीं के द्वारा यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि इस अधिनियम से देशवासियों की नागरिकता जाने का खतरा है। ऐसी पार्टीयों ने भारतीय जनता पार्टी को सदन में धोका दिया।
यदि उन्हें अपने राज्यों में इसे लागू नहीं करना था तो इसका समर्थन उन्होंने किस राज्य और देश के लिए किया था। जबकि ये अधिनियम तो किसी भी राज्य में लागू होने वाला नहीं है? इस सिटीजनशिप अमेण्डमेन्ट अधिनियम (सीएए) से भारत के एक भी नागरिक की नागरिकता छिनने वाली नहीं है।
इस अधिनियम के जरिये भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-11 में ये बढ़ाया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफागानिस्तान में धर्म के आधार पर शाेिषत अल्पसंख्यक जिनमें हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, जैनी, सिख और पारसी हैं, उनको आसानी से नागरिकता दी जायेगी, लेकिन उनको धार्मिक तौर पर शोषित किये जाने का प्रमाण देना होगा (वैसे यह भी एक टेढी खीर ही है)।
सीएए के माध्यम से भारत सरकार ने सिटीजनशिप एक्ट-1955 में संशोधन करके नागरिकता दिये जाने में कुछ और रियायतें बढा दी हैं। इससे भारत में रह रहे सभी भारतीय नागरिकों के समानता के अधिकार का भी हनन नहीं हुआ है। बल्कि जिन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात ये अधिनियम कर रहा है, उन देशों की राज्य नीति के तहत उनका शोषण किया जाता रहा है।
ऐसा नहीं है कि सिटीजनशिप एक्ट-1955 में भाजपा सरकार ने ही संशोधन किया है। इस एक्ट (अधिनियम) में पूर्व में भी वर्ष 1986, 1992, 2003 और 2005 में संशोधन किया जा चुका है। वर्तमान संशोधन से भी कोई ऐतराज की बात दिखाई नहीं देती है। दरअसल भारतीय जनता पार्टी उन विपक्षियों की चाल में फंसकर रह गई है जिसने इस संशोधन के पक्ष में सदन में तो उसका साथ दिया लेकिन अब विरोध करने वालों के साथ खड्ा है, या कहिए विरोध की ज्वाला भडकाने का काम कर रहा है।
देश में घट रहे घटनाक्रम को देखा जाये तो एक बात स्पष्टरूप से छनकर बाहर आती है कि भारतीय जनता पार्टी को जिस तरह महाराष्ट्र में सम्पन्न हुए हाल ही के विधानसभा चुनाव के बाद एनसीपी के मुखिया श्री शरद पवार ने अपने भतीजे अजित पवार के माध्यम से फण्नवीस को बेवकूफ बनाकर सरकार बनाने के लिए प्रेरित किया और अपनी घोटाले की फाइलें बन्द कराकर पुनः शरद पवार के साथ शामिल होकर फण्नवीस को कहीं का नहीं छोडा ठीक वही कार्यशैली को यहाॅं भाजपा को सदन में साथ देकर और सदन से बाहर अपना रंग दिखाकर किया है। अब ये भाजपा के लिए विचार मंथन का विषय होना चाहिए कि वह कितनी होशियार है और विपक्ष कितना मूर्ख?