पंचतंत्र
PanchTantra की कहानी भाग-छह
इसका एक कारण तो यह है कि इस तरह का वर्णन कहानी की मार्मिकता के बावजूद अक्सर उबाऊ हो सकता था। दूसरे अनेक स्थलों पर अपने युग की दृष्टि को ध्यान में रख कर पंचतंत्र के लेखक के दृष्टिकोंण से असहमति जताना वर्णन में व्यंग्य का पुट ला कर ही संभव था।
इन स्थलों या असंगति के प्रसंगों को छोड़ कर अन्यत्र हमारा प्रयत्न सीधी और सरल भाषा और वाक्य रचना का प्रयोग करने का ही रहा है। तत्सम शब्दों का यथासंभव कम प्रयोग, उसी आशय को प्रकट करने वाले अधिक लोकप्रिय शब्दों, बोलचाल के पदों या वाक्य भंगियों का प्रयोग करने का प्रयत्न भी इसमें दिखाई देगा।
वह इन कहानियों को अधिक सरस बनाता है या अधिक भदेस, यह निर्णय भी हमारे वश का नहीं है। संस्कृत सूक्तियों में गागर में सागर भरने का जो प्रयत्न है उसके कारण प्राय: लोग इन्हें कंठस्थ कर जाते हैं और इसी रूप में ये जीवन में निर्णायक क्षणों में अधिक उपयोगी हो पाती हैं।
गद्य में अनुवाद करने पर आशय तो समझ में आ जाता है पर पूरी तरह याद नहीं रह पाता। इन कहानियों को पढऩे वालों में कुछ की रुचि निश्चय ही इस बात में होगी कि वे कुछ सूक्तियों या ज्ञान रश्मियों को अपने समृति में उतार सकें, इसलिए अधिक मार्मिक या विलक्षण प्रतीत होने वाले श्लोकों का भाव कहानी में समेटने के बाद भी इन्हें मूल संस्कृत में भी दे दिया गया है।
सभी श्लोकों के साथ ऐसा करना न तो जरुरी था न ही यह रोचक हो सकता था। अक्सर तो एक ही श्लोकों को एक से अधिक स्थलों पर दुहराया गया है। और अनेक श्लोकों में एक ही बात को उबाऊ बनाने की हद तक दुहराया गया है। ऐसे अवसरों पर हमने इनको निकाल दिया है। या कम से कम मूल में देना जरुरी नहीं समझा है।
इन कहानियों को लिखते समय यह प्रलोभन बार-बार होता रहा कि जो संस्कृत नहीं समझ सकते उनकी स्मृति में टंके रहने के लिए भी इनमें से कुछ सुक्तियों का अनुवाद पद्यबद्ध रुप में किया जाए। लगा कि यह असंभव भी नहीं है। एक चरण पर जा कर इसे आजमा कर देखा भी:………………Contd.
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