PanchTantra की कहानी भाग—चार
पुराणों का प्रवेश हुआ भी तो उनका प्रभाव अल्पकालिक ही रहा। पर भारतीय कृतियों में पंचतंत्र अकेली ऐसी रचना है जिसे सही अर्थ में दुनिया का सबसे पुराना ज्ञानकोष कहा जा सकता है।
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इसे इसी रूप में दुनिया में जाना भी गया। जिन देशों से भारतीयों का नाम मात्र को ही संपर्क रहा, वहां भी इसकी धूम मच गई थी। जिन देशों में ‘रमायाण और ‘महाभारत’ का नाम आधुनिक काल से पहले नहीं सुना गया था। उनमें भी प्राचीन काल में ही इसका प्रवेश हो गया था। जिन भाषाओं का लिखित साहित्य नहीं था।
उनमें भी इसका प्रवेश लोक परंपरा के रास्ते हो गया था। इसका अनुवाद करने वालों ने इसे ज्ञान की किताब कह कर ही अपनाया और अनुवाद किया। यह दुनिया का प्राचीनतम ज्ञानकोष है। और विष्णुशर्मा दुनिया के पहले ज्ञानकोषकार। इसकी प्रकृति उतनी ही संप्रदाय निरपेक्ष है। जितना किसी ज्ञानकोष की होनी चाहिए।
शर्माजी ऊंचे परिवारों, ऊंची जातियों, धर्मों, मतों, साधुओं, सन्यासियों, राजाओं, रानियों, मंत्रियों, पुजारियों, पंड़ों, महंतों, किसी को क्षमा नहीं करते थे। और यह मान कर चलते थे कि इनमें से कोई भी उतना ही घटिया हो सकता है। जितना घटिया से घटिया आदमी। धर्म, मठ, मंदिर, जाति, संप्रदाय, आदर्श कुछ भी ऐसे नहीं हैं।
जिसका उनयोग भ्रष्ट और अपराधी लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए न कर सकें। और इसलिए प्रशासक को केवल इसलिए इन्हें सहन नहीं करना चाहिए कि भ्रष्ट और अपराधी तत्वों ने इनकी आड़ ली है। वह एक शिक्षा है। जिसे धर्मनिरपेक्षिता और सर्वधर्म समभाव को तकिया—कलाम की तरह दुहराते रहने वाले राजनीतिज्ञ और प्रशासक सीख सकें। तो वे देश और समाज का बहुत कल्याण करेंगे।
सेकुलरिज्म पश्चिम के लिए नई अवधारणा हो सकती है। क्योंकि वहां धार्मिक जकड़बंदी इतनी कठोर रही है कि तनिक सी छूट को भी असह्य मान कर भारी रक्त पात होता रहा है। इस देश में इसकी एक लंबी परंपरा रही है और इसका कुछ श्रेय चाणक्य जैसे अर्थशास्त्रियों और विष्णुशर्मा जैसे रचनाकारों को जाता है।
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