PanchTantra की कहानी भाग—तीन
लोगों का यह दावा कि जो कुछ इसमें है, वही अन्यत्र भी मिलेगा, जिसका वर्णन इसमें नहीं है।
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वह कहीं और मिल ही नहीं सकता, यदिहास्ति तदन्यत्र यदिहास्ति न तत्क्वचित् या महाभारत में जिसका वर्णन नहीं है। वह भारत में है ही नहीं। यन्न भारते तन्न भारते। इसी को प्रमाणित करता है। इसी के चलते रामायण के चरित्र को भी काफी दूर तक बदल कर उसकी प्रवाहमय कथा को कुछ लध्धड़ बना दिया गया। और कुछ इधर—उधर का ज्ञान इनमें भी पिरो दिया गया।
रामायण और महाभारत की लोकप्रियता का प्रधान कारण भी यही है। कि ये साहित्य की भूख मिटाने से अधिक ज्ञान की भूख मिटाते हैं। तुलसी इस भेद को जानते थे और उन्होंने अपने मानस में नाना पुराणों, निगमों, आगमों के अतिरिक्त अन्यत्र से भी सामग्री लेकर बहुत से मार्मिक स्थलों पर पिरोका मानस को वाल्मीकी रामायण से भी अधिक उपयोगी ज्ञानकोष बना दिया।
तुलसी के मानस की लोकप्रियता का प्रधान कारण भी भक्ति भावना नहीं। मानस की यही ज्ञानवर्धकता है। अकेले तुलसी का मानस पढ़ कर ही अक्षरज्ञान रखने वाले नर—नारी पंडि़त बन जाते रहे हैं। और व्यावहारिक जगत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेते रहे हैं। पुराणों का तो लक्ष्य ही था सृष्टि से लेकर प्राचीन इतिहास और अन्य सूचनाओं को एकत्र करना। इन महाकाव्यों ने इस मामले में उन्हें पीछे छोड़ दिया। पर इन सभी की एक सीमा रही है।
इनकी प्रकृति आधी धार्मिक और साहित्यिक रही है। यही कारण है कि जिन देशों में भारतीय राजाओं, व्यापारियों और धर्मप्रचारकों का सीधा प्रवेश हो पाया था। जो इनके संपर्क में रहे, उनमें से कुछ में ही ‘रामायण और ‘महाभारत की कहानियां और लीलाएं पहुंच पाईं। उनका ज्ञानपक्ष वहां उपेक्षित ही रहा। पुराणों का प्रवेश हुआ भी तो उनका प्रभाव अल्पकालिक ही रहा। पर भारतीय कृतियों में पंचतंत्र अकेली ऐसी रचना है जिसे सही अर्थ में दुनिया का सबसे पुराना ज्ञानकोष कहा जा सकता है।
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